आपकी कुछ आदतें आपको डिप्रेशन की ओर ले जा सकती है

आपकी ये 3 आदतें, आपको डिप्रेशन की ओर ले जा सकती हैं!








 


 


यह आपने कई बार, कई लोगों से सुना होगा कि 'हम जो करते हैं, हम वो बनते हैं'. इसे आप कुछ इस तरह से भी समझ सकते हैं कि जब लगातार एक जैसा काम करते हैं तो उसे हमारी आदत कहा जाने लगता है और हमारी आदत यह डिसाइड करती है कि ज़िंदगी की दौड़ में हम किस मुक़ाम तक पहुंचेंगे.
जहां हमारी अच्छी आदतें, हमें ख़ुश, संतुष्ट, सेहतमंद और सफल बनाती हैं, वहीं बुरी आदतें इसका उल्टा असर डालती हैं. आज हम उन तीन कॉमन आदतों के बारे में बात करने जा रहे हैं, जो हमारी ज़िंदगी को प्रतिकूल ढंग से प्रभावित कर सकती हैं. हमें अकेलेपन और अवसाद की ओर धकेलने में इन तीन आदतों का बड़ा हाथ है.







पहली आदत: हमेशा ऑनलाइन रहना
जब हम दुखी और तनावग्रस्त महसूस करते हैं तो ख़ुद को रिलैक्स करने के लिए आमतौर पर फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम या व्हाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म्स का रुख़ करते हैं. इसके पीछे हमारी यह सोच होती है कि इससे हमारा ध्यान तनाव पैदा करनेवाली बातों से दूर जाएगा. लेकिन कई शोध यह प्रमाणित कर चुके हैं कि जब आप सोशल मीडिया पर ज़्यादा समय बिताते हैं, दूसरों की ज़िंदगी में ताकझांक करते हैं, उनकी ख़ुशहाल तस्वीरों और अपडेट्स को देखते हैं तो आप अपनी मौजूदा ज़िंदगी को लेकर और भी दुखी हो जाते हैं.
एक रिसर्च के अुनसार, जो लोग सप्ताह में 70 घंटे या उससे अधिक समय कम्प्यूटर या मोबाइल स्क्रीन को देखते हुए बिताते हैं उनके डिप्रेशन में जाने, नींद की कमी से जूझने और आमने-सामने के संवाद से झिझक होने की संभावना ऐसा न करनेवालों की तुलना में अधिक होती है. यदि आप उस दौरान ज़्यादातर समय ऑनलाइन रहते हैं तो आपके अकेलापन और जीवन में असंतुष्ट महसूस करने की संभावना और भी बढ़ जाती है. और यह सब डिप्रेशन की ओर जाने के शुरुआती लक्षण हैं.
ऐसे में क्या करें?: लो फ़ील करने पर दिमाग़ को दूसरी गतिविधि में लगाना चाहते हैं तो सोशल मीडिया का सहारा लेने के बजाय किताबों को वरीयता दें. किताबें अब भी सबसे उम्दा स्ट्रेस बस्टर्स में एक मानी जाती हैं. इसके अलावा आप वर्चुअल (आभासी) ज़िंदगी के बजाय असल ज़िंदगी से जुड़ने की कोशिश करें. आपका मन पढ़ने से भी न बहल रहा हो तो घर से बाहर निकल जाएं. किसी दोस्त से मुलाक़ात कर आएं. या बस यूं ही कुछ समय के लिए किसी अच्छे गार्डन में चले जाएं. कहने का मतलब है, ख़ुद को रियल लाइफ़ से जोड़ें. उससे दूर न भागें.  






3 आदतें, आपको डिप्रेशन की ओर ले जा सकती हैं!

दूसरी आदत: कुछ ज़्यादा ही कॉफ़ी पीना
आप कहेंगे, अब कॉफ़ी पीने में क्या समस्या है? कॉफ़ी पीकर तो हम फ्रेश और नींद से जगा हुआ महसूस करते हैं. पर रिसर्चर्स का इससे अलग सोचना है. दरअस्ल, कॉफ़ी या दूसरे शुगरी ड्रिंक्स आपको एलर्ट नहीं करते, बल्कि आपकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हैं. शोधों की मानें तो हाई कैफ़ीन एनर्जी ‌ड्रिंक्स हमारे मूड को ख़ुशगवार बनाने का भ्रम भर पैदा करते हैं.
जब हम कॉफ़ी का सेवन करते हैं, तब उसमें मौजूद कैफ़ीन तनाव के प्रति होनेवाले हमारे सामान्य रिऐक्शन को दबा देता है. उसके चलते एलर्ट करनेवाले हार्मोन एड्रनलिन का प्रोडक्शन बढ़ता है. हम ख़ुद को फ्रेश और एलर्ट महसूस करते हैं. अगली बार जब दोबारा लो फ़ील करते हैं तब एक और कॉफ़ी पी लेते हैं. इस तरह ख़ुद को एलर्ट रखने के लिए हमें कॉफ़ी की लत लग जाती है.
एक्स्ट्रा कैफ़ीन शरीर में ज़रूरत से ज़्यादा एड्रनलिन प्रोडक्शन का कारण बनता है. लंबे समय तक तनाव के प्रति मस्तिष्क के सामान्य रिऐक्शन के दबाने के चलते आप धीरे-धीरे एन्ज़ायटी, लो मूड, पैनिक अटैक, इन्सोम्निया और स्ट्रेस की गिरफ़्त में फंसने लगते हैं. स्ट्रेस बढ़कर डिप्रेशन की शक्ल अख़्तियार करने लगता है.
ऐसे में क्या करें?: संभव हो तो कैफ़ीन ड्रिंक्स से पूरी तरह तौबा कर लें. यदि आप कॉफ़ी न छोड़ पा रहे हों तो उसकी मात्रा सीमित कर दें. शाम के चार बजे के बाद तो कॉफ़ी न ही पिएं तो अच्छा होगा. ख़ुद को फ्रेश और एलर्ट रखने के लिए आप कैफ़ीन के बजाय हर्बल या ग्रीन टी की मदद ले सकते हैं.






 3 आदतें, आपको डिप्रेशन की ओर ले जा सकती हैं!


तीसरी आदत: खाने-पीने के मामले में नियमित न होना
जब हमारी दिनचर्या अनियमित होती है तो उसका प्रभाव सबसे पहले हमारे खानपान पर पड़ता है. समय-कुसमय सोने-जागने के चलते हम अपने शरीर को खानपान का सही चक्र फ़ॉलो करने की आदत नहीं डलवा पाते. हमें सबसे पहले और सबसे आसानी से जो मिलता है, उसे शरीर के हवाले कर देते हैं.
जिन लोगों में खानपान की इस तरह की अनियमित आदत होती है, वे दूसरों की तुलना में फ्रेश फल और सब्ज़ियां काफ़ी कम या न के बराबर खाते हैं. यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की एक स्टडी के कहती है कि ताज़े फल और सब्ज़ियां न खानेवाले लोग डिप्रेशन का शिकार आसानी से हो जाते हैं.
इसका वैज्ञानिक कारण यह बताया गया कि फलों और सब्ज़ियों में पाए जानेवाले ऐंटी-ऑक्सिडेंट्स ब्रेन सेल्स का फ्री रैडिकल्स के चलते होनेवाले डैमेज से बचाव करते हैं और हमारे दिमाग़ को मज़बूत बनाते हैं. जो लोग ताज़े फल और सब्ज़ियां खाते हैं, उनका दिमाग़ तनाव को बेहतर ढंग से हैंडल कर सकता है. 
ऐसे में क्या करें आप?: आपको सबसे पहले अपनी दिनचर्या को नि‌यमित करना चाहिए. यह तो हम सब जानते हैं कि जब हम सारे काम तय समय पर करते हैं तब काम के पेंडिंग होने की संभावना कम होती है. और हम तनाव से बचते हैं. जब आपकी दिनचर्या नियमित होती है, तब आप सही समय पर खाते-पीते हैं और सभी पोषक तत्वों के आपके आहार में शामिल होने के चांसेस भी अधिक होते हैं. दिनचर्या नियमित करने के साथ-साथ अपनी डायट में बेरीज़, ग्रीन सलाद, फल और सब्ज़ियां शामिल करें. इससे आप न केवल शारीरिक रूप से सेहतमंद बनेंगे, ‌बल्कि दिमाग़ी तौर पर भी हेल्दी महसूस करेंगे.