प्रकति

                    प्रकति                        सतोगुण-रजोगुण-तमोगुण इन तीनों गुणों की साम्यावस्था को ही प्रकति कहा गया है इन तीनों गुणों से युक्त होकर भगवान ब्रह्मा सृष्टि का सृजन करते हैं, विष्णु पालन करते हैं व रुद्र संहार करते हैं। जो कुछ भी दिखाई देता है वह तीनों गुणों से ही यक्त है। मन निर्मल होने के कारण प्रकाश करने वाला और विकाररहित है। वह सख के सम्बन्ध से और ज्ञान के अभिमान से मनुष्य को बाँधता हैरागरूप रजोगुण कामना और आसक्ति से युक्त है। यह जीवात्मा को कमों के और उनके फल के सम्बन्ध से बाँधता है। सब देहाभिमानियों को मोहित करने वाला तमोगुण अज्ञान से उत्पन्न है। यह जीवात्मा को प्रमाद, आलस्य और निद्रा के द्वारा बांधता है। सत्वगुण सुख में रजोगुण कर्म में व तमोगुण ज्ञान को ढककर प्रमाद में लगाता है। रजोगुण व तमोगुण को दबाकर सतोगुण, सत्व और तम को दबाकर रजोगुण वैसे ही सत्वगुण व रजगुण को दबाकर तमोगुण बढ़ता है। सत्वगुण के बढ़ने पर अंतःकरण व इन्द्रियों में चेतनता व विवेकशक्ति उत्पन्न होती है। रजोगुण के बढ़ने पर लोभ प्रवृत्ति, स्वार्थबुद्धि, कर्मों में सकामभाव का आरम्भ, अशांति और विषयभोगों की लालसा उत्पन्न होती हैतमोगुण से अंतःकरण और इन्द्रियों में अप्रकाश, कर्तव्यकमों में अप्रवृत्ति, प्रमाद, व्यर्थ चेष्टा, निद्रादि उत्पन्न होते हैं। सत्वगुण की प्रधानता के समय मरने पर स्वर्गादिलोक, रजोगुण के समय मरने पर कर्मासक्त मनुष्यों में तथा तमोगुण की प्रधानता के समय मरने वाला कीट, पशु आदि मूढयोनियों में उत्पन्न होता हैसात्विक कर्म का फल सुख, ज्ञान और वैराग्याद है, राजस कर्म का फल दुःख व तामस कर्म का फल अज्ञान कहा गया है। सत्त्व से ज्ञान, रज से लोभ और तम से प्रमाद व मोह उत्पन्न होता है। नाना प्रकार की सब योनियों में जितना मूर्तियाँ अर्थात् शरीरधारी प्राणी उत्पन्न होते हैं, प्रकति तो उनकी गर्भ धारण करने वाली माता है और परमात्मा बीज स्थापित करने वाला पिता। प्रकृति से ही सत,रज और तमोगुण उत्पन्न हुए। प्रकृति ही माया है।