ऋषी मुनी साधु संत-महात्माओं के पास हरि नाम की दौलत

ऋषी मुनी साधु संत-महात्माओं के पास हरि नाम की दौलत


एक राजा ने अपना राजपाट छोड़ कर एक ऋषि महात्मा के चरणो मैं रह कर दिल से उनकी सेवा की और ऋषि ने भी उनको पूरा ज्ञान देकर राजा को भी एक महात्मा बना दिया ओर फिर एक दिन राजा अपने गुरु श्रेष्ठ का आशीर्वाद प्राप्त करके उनकी आज्ञा लेकर अपने राज्य की ओर चल पडा ।


परंतु अब वह राजा बनकर नहीं बल्कि एक फ़कीर बनकर लौटे थे वो अपने महल मैं नहीं गए । ओर ऊँहोने अपने राज्य की एक नदी के किनारे ही झोपड़ी डाल कर रहने लगे और श्री हरिजी की भक्ती करने लगे और फिर एक दिन राजा नदी के किनारे बैठा गदड़ी सी रहा था।


उसका वज़ीर शिकार खेलता-खेलता उधर आ निकला। अब इतने सालों में शक्ल बदल जाती है। कहाँ बादशाही पोशाक, कहाँ फ़कीरी लिबास ! तो भी वज़ीर ने उसे पहचान लिया और पूछा, 'आप बादशाह आप हे ?' जवाब मिला, 'हा मैं ही तुम्हारा राजा था ।'


वज़ीर बोला कि देखो, मैं आपका वज़ीर हैंआपके जाने के बाद मैंने आपके बच्चों को तालीम दीशस्त्र-विद्या सिखायी, पर कितना अच्छा हो कि आप अब फिर मेरे बादशाह हों और मैं आपका वज़ीर अपना राज्य संभालो । यह सुनकर राजा ने जिस सूई से वह गुदड़ी सी रहा था, वह सूई नदी में फेंक दी और कहा कि पहले मेरी सूई ला दो, फिर मैं तुम्हें जवाब दूंगा।


वज़ीर कहने लगा कि मुझे आधे घंटे की मोहलत दें. मैं आपको ऐसी लाख सूइयाँ ला दूँगा। राजा ने कहा कि नहीं, मुझे तो वही सूई चाहिए। वज़ीर ने कहा, 'यह तो नामुमकिन हैइतना गहरा पानी बह रहा है, वह सूई नहीं मिल सकती।'


बादशाह बोला कि तुम कुछ नहीं कर सकते और फिर राजा ने वहीं बैठे हुए तवज्जुह दी ओर एक मछली सूई मुँह में लेकर ऊपर आयीराजा ने कहा कि मुझे तुम्हारी इस बादशाही को लेकर क्या करना है! मैं अब उस परमात्मा का नौकर हो गया हूँ, जिसके अधीन सारे खंड-ब्रहमांड, कुल कायनात है। ओर पूरी प्रक्ती  अब मैं मेरे साथ हे ओर उसकी दया से सब होता है अब मैं वह नहीं, जो पहले था।


मुझे अब उन पार ब्रहम ब्रह्मांडों का अनुभव हो गया है। जिनके बारे में कभी सोचा भी नहीं जा सकता। जैसे तुम मुझे वह सई वापस लाकर नहीं दे सकते, ऐसे ही तुम उस राजा को मुझ में नहीं पा सकते। जाओ, अब मेरे लड़के जानें या तुम जानो! वजीर मायूस होकर लोट गया प्रभु श्री हरि जी नाम एक अमूल्य वस्तु है।


ऋषी मुनी साधु संत-महात्माओं के पास हरि नाम की दौलत होती है, इसलिए वे सांसारिक पदार्थों से अनासक्त होते हैं। और हम सांसरिक व्यक्ती एसे ही किसी पुरन ऋषि संत महात्मा के पास जाकर हम उनसे दिक्षा लेकर उस परम पिता प्रभु श्री हरि जी से मिलाप करके मोक्ष प्राप्त कर सकते है। ॐ नमो भगवते' 'वासुदेवाय नमः