शरद गुप्ता जी की यह कविता-मत निकन मत निकल, मत निकल आज के समय में बहत उपयुक्त जान पड़ती है। इस कविता का एक-एक शब्द जैसे आज की परिस्थिति में हमारे लिए उन्होंने लिखा है !
शत्रुये अदृश्य है
विनाश इसका लक्ष्य है
कर न भूल, तू जरा भी ना फिसन
मत निकल, मत निकल, मत निकल ......
हिला रखा है विश्व को
रुला रखा है विश्व को
फूंक कर बढ़ा कदम, जरा संभल
मत निकल, मत निकल, मत निकल......
उठा जो एक गलत कदम
कितनों का घुटेगा दम
तेरी जरा सी भूल से देश जाएगा दहल
मत निकल, मत निकल, मत निकल......
संतुलित व्यवहार कर
बन्द तू किवाड़ कर
घर में बैठ, इतना भी
तू ना मचल
मत निकल, मत निकल, मत निकल......