श्री_गायत्री_का_तन्त्र_संबंध ,अघोरी भैरव गौरव गुरुजी मां कामाख्या धाम असम गुवाहाटी

श्री_गायत्री_का_तन्त्र_संबंध


गायत्री तंत्र नाम का एक मूल रहस्य आता है इस मूल रहस्य पुस्तक के रचयिता स्वयं भगवान श्री ब्रह्मा जी है इसी मुख्य ग्रंथों में श्री भगवती गायत्री का संबंध श्री भगवती आध्या काली से बताया गया है इसी ग्रंथ में यह वर्णन किया गया है।


कि गायत्री की भी मूल्य शक्ति श्री भगवती आध्या काली है क्योंकि भगवती आध्या काली ही मूलाधार निवासिनी है मूलाधार चक्र भगवती आध्या काली के कार्य क्षेत्र में आता है योगिक क्रियाओं में ऐसा माना जाता है कि अगर आपका मूलाधार चक्र ही जागृत नहीं हुआ तो आप सहस्रार तक पहुंच ही नहीं पाएंगे।


और मूलाधार चक्र के तीन प्रमुख देवता बताए गए हैं गणपति आध्या काली और ब्रह्म गायत्री जिसमें से आध्या काली ही है जिन्होंने श्रीहरि विष्णु को योग निद्रा में सुनाएं रखा था जिन्होंने मधु कैटभ आदि का वध किया था ब्राह्मा जी, विष्णु, महेश जिनकी स्तुती करते हैं।यही इस चक्र की इस मूलाधार चक्र की परम देवी है,


प्रमुख देवी है और यही आध्या काली भगवती मां गायत्री की भी आराध्या है यह सब वर्णन ब्रह्मा जी द्वारा लिखित तंत्र से किया गया है परंतु समय काल के अनुसार यह सब विलुप्तता की ओर बढ़ रहा है।


आप सब लोग देखे होंगे कई बार एक गायत्री के जो चित्र हैं उसमें वह पंचमुखी हैं अभय वर मुद्रा को धारण किए हुए हैं यम पाश धारण किया है और वाम हस्त में उन्होंने कपाल भी धारण किया हुआ है।


कपाल तो भगवती काली ही धारण करती हैं तो ऐसा यह प्राचीन चित्र है इसका वर्णन कई जगह पर किया गया है यह वही प्रकाशित करता है कि इनका संबंध जो है मूल आध्या विद्या से है और यही तंत्र की प्रमुख देवी भी है।


जो इस समय इस सतयुग से ब्रह्म विद्या के रूप में जाने जा रही हैं और यही ब्रह्म विद्या सविता देवता जिनका संबंध सूर्य से भी है गायत्री मंत्र जो है उसका जो आगे के तीन भाग हैं ॐ भूर्भुवः स्वः यही मात्र बीज अक्षर बाकी बाकी आगे जो भी है वह सविता का गायत्री मंत्र है। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् तो हमें देखने पर यह प्रमाण और साक्ष्य भी मिलने हैं।


गायत्री के हाथ में कपाल भी है या पास भी है अगर यह सौम्या देवी होती तो इनके हाथ में यह नहीं होता है ना और इन्हें त्रिपदा गायत्री भी कहा गया है। जिनका ध्यान ब्रह्म बासित वर्णन में तीन प्रकार की संधियों में प्रातः मध्यान और सांयकाल अलग-अलग प्रकार से किया जाता है ।


नमः_चण्डिकाये...