नारी हूँ मैं "
नारी हूँ मैं "आरी सी.
अकेनी सब पर भारी सी।।
तूफानों का डर नहीं, मैं खुद ही बड़ा बवंडर हूँ।।
मैं दुर्गा हूँ. मैं काली हॅू।
मैं अकेली नौ अवतारी हूँ ।।
बर्दाश्त से ज्यादा बर्दाश्त की सीमा रखती हूँ,
मैं पार्वती सी शोभायमान, काली का प्रचंड स्वाभिमान भी रखती हूँ।।
मैं नारी हूँ, मैं कली और काली हूँ।
चाहे तो दुनिया की तस्वीर बदल सकती हूँ मैं,
चाहे तो समाज की तकदीर बदल सकती हूँ मैं।।
दुर्गा की आकार हूँ मैं, चूल्हे की ताप नहीं।
हवन कुंड की आग हूँ मैं।। ..
ममता का सागर हूँ मैं,
दैत्यों का संहार करना भी आता है।
मां, बहन,बेटी और पत्नी हूँ मैं,
संसार चलाना भी आता है।।
मैं अपना ही हाल बताती हूँ,
एक जालिम की करतूत सुनाती हॅूं मै।
एक भाई को आशिक में तब्दील होते देखा है,
वो हवसीभेड़िया था, उसे मौके का इंतजार करते देखा है।।
मैं बेटी हैं. मैं माता हूँ. मैं बलिदानो की गाथा हूँ।
मैं श्रीमद भगवत गीता हूँ.
मैं द्रौपदी हूँ. मैं सीता हैं।।
अमृत की जननी, स्तन धारी हूँ मैं।
हां नारी हूँ मैं। आरी" सी।
रक्त से सींच कर, नौ महीने कोख में रखकर दर्द सह गयी सारी हूँ मैं।
हा!! नारी हूँ मैं। आंखों में लेकर न्याय की आग, तकदीर ने बंदूक थमाई है।
सीने पर रख पत्थर अपने मैंने हिम्मत दिखाई है।।
नारी हूँ मैं "आरी" सी। अकेली सब पर भारी सी।। (जप बाघी)