अहिल्याबाई होल्कर

अहिल्याबाई होल्कर


बाजीराव पेशवा के स्वामिभक्त सहायकों में मल्हारराव होल्कर एक थे। मराठों की सेनाएँ विजय संपादन में लगी थीं। एक बार मल्हारराव गुजरात के किसी विद्रोह दल का दमन करने के लिये पूना जा रहे थे तो उन्होंने पाथरड़ी के शिव मंदिर में सेना सहित डेरा डाल दिया।


आनंदराव मनकोजी सिंधिया की होनहार कन्या अहिल्या को इन्होंने यहाँ देखा जो स्वभाव से सुशील और रूप से अत्यंत सुंदर थी। इन्दौर (मध्यप्रदेश) में लाकर अपने पुत्र खण्डेराव से शुभ समय में विवाह कर दिया। एक गरीब की कन्या अब राजवधू बन गयी। सास-ससुर, पति की सेवा के साथ एक आदर्श हिन्दू नारी का जीवन यापन करने लगी।


वह भगवदभक्त थी। कुछ काल के बाद उनके एक पत्र जन्मा जिसका नाम मालेराव रखा और एक कन्या जिसे मुक्ताबाई कहा जाने लगा, ऐसे एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म दिया। दाम्पत्य सख ज्यादा न मिल सका। कुयेंरी की लड़ाई में इनके पतिदेव खण्डेराव का निधन हो गया।


यह पति के साथ सती होना चाहती थी पर सास और ससुर ने ऐसा करने से उन्हें रोक दिया। सन् १७६१ के पानीपत के युद्ध से लौटकर मल्हारराव ने रानी अहिल्या की बड़ी प्रशंसा की और राज्य के सारे अधिकार उन्हें सौंप दिये। सन् १७६५ में मल्हाराव का निधन हो गया तब पुत्र मालेराव को रजगद्दी पर बैठाया।


वह अत्यंत क्रोधी, उतावला और भक्त माँ से पैदा हुआ दुष्ट हृदय पुरुष था। माँ ब्राह्मणों की पूजा करती थी तो वह उन्हें कोड़े लगवाता था। धर्म के विपरीत उसका आचरण था। पापों का घड़ा भर गया और मालेराव की मौत हो गयी। अहिल्याबाई ने स्वयं ही राज्य सँभाला।


शासन करने के लिए उन्होंने माँ नर्मदा किनारे महेश्वर को अपनी राजधानी बनाया। वह शिवभक्त थी। जब बाजीराव पेशवा के मरने के बाद माधवराव पेशवा बने तब उनसे द्वेष रखने वाले उनके चाचा रघुनाथराव जो व्यसनी, कपटी और मूर्ख थे,


इन्दौर के मंत्री गंगाधर यशवंत के भड़काने से सेना लेकर राज्य हड़पने की मंशा से इंदौर की तरफ आये। रानी ने अपनी सूझ-बूझ से भोंसले और गायकवाड़ से सैन्य सहायता माँगी जो उन्हें मिल गयी। रानी ने माधवराव पेशवा को पत्र लिखकर रघनाथराव के दुष्प्रयोजन की सूचना दी।


पेशवा माधव को तो कुछ पता न था। अतः कहा कि राज्य की रक्षा करने और दण्ड देने का रानी को पूर्ण अधिकार है। क्योंकि राज्य पेशवाओं के अधीन था।शत्रु क्षिप्रा नदी से भय के कारण आगे न बढ़कर वापस चला गया। रानी शासन करने में जितनी कठोर थी, दया करने में भी उतनी ही उदार थीं।


उन्होंने इस दुष्ट गंगाधर यशवन्त को क्षमा कर दिया। रानी ने प्रजा की भलाई के साथ ही तीर्थ स्थानों में नये देव मंदिर बनवाये व काशी विश्वनाथ मंदिर, सोमनाथ, विष्णुपदी गया, परली बैजनाथ मंदिरों का जीर्णोद्धार भी करवाया। अन्न क्षेत्र भी खोले। दुष्ट रघुनाथराव ने दूसरी बार भी होल्कर राज्य पर इसलिये हमला करने की सोची कि रानी ने उसे राशि (धन) देने से मना कर दिया था।


रानी ५०० स्त्रियों के साथ युद्ध के मैदान में पहुँच गयी, मुझे मारकर रुपये ले जा सकते हो, हमारे ये रुपये दान और धर्म के लिए हैं। रानी के अदम्य साहस को देखकर रघुनाथराव बिना धन लिये वापस लौट गया। रानी का प्रसिद्धि-परांगमुख स्वभाव था।


एक ब्राह्मण ने रानी की प्रशंसा में एक पुस्तक लिखकर इन्हें भेंट की। पूरी पढ़ने के बाद उसे नर्मदा में फिंकवा दिया। तीस वर्षों तक शासन करने वाली महारानी अहिल्याबाई होल्कर साठ साल की उम्र में बारह हजार ब्राह्मणों को एक साथ भोजन करा पवित्र होकर स्वर्ग सिधार गयी।