रविन्द्र नाथ का बडप्पन

रविन्द्र नाथ का बड़प्पन


कविवर रवीन्द्र नाथ टैगोर को नोबेल पुरस्कार मिला दुनिया भर से बधाई संदेश आने लगे। उनके घर पर गणमान्य अतिथियों का तांता लग गया सारा नजारा टकटकी लगाकर उसका पड़ोसी देखता रहा लेकिन उनका अभिनंदन नहीं पड़ोसी मन ही मन सोचता कि सभी उनके पांव क्यों छूते हैं । उनमें ऐसा क्या है वह बस देखता ही रहता कुछ बोलता नहीं उधर टैगोर  पड़ोसी के इस व्यवहार से परेशान हुए उन्होंने महसूस होने लगा कि मेरा पडोसी मुझसे शायद नाराज है विश्व कवि भी पड़ोसी से मन ही मन नाराज हुए अगली सुबह वे सागर किनारे टहल रहे थे । सूर्य की किरण पढ़ने से सागर चांदी सा दमक उठा टैगोर भाव विभोर होकर देखते रहे । तभी उनकी नजर करीब भी पानी से भरे गड्ढे पर पड़ी वहां भी सूर्य की किरण बराबर पढ़ रही थी टैगोर ने सूर्य से सीख ली हर तरफ उतनी ही किरणे सूर्य इस कदर समानता रखता है । तो खून में भेदभाव क्यों सवाल चरण स्पर्श का है । मेरा पड़ोसी नहीं करता तो मैं उसे करता हूँ  । टैगोर सीधे पड़ोसी के घर गए वह चाय पी रहा था ।टैगोर ने फौरन उनके चरण स्पर्श किये पड़ोसी की आंखें पानी की बूंदों से भर आई वह बोला आपके जैसे देवतुल्य व्यक्ति को नोबल पुरस्कार मिलना उचित था । यह कहकर उनका पड़ोसी उनके चरणों में झुक गया ।