नागरिक संशोधन अधिनियम 2019का विरोध क्यों महेश अवस्थी

नागरिक संशोधन अधिनियम 2019 का विरोध क्यों  - महेश अवस्थी


आज देश में कुछ लोग इसका विरोध कर रहे हैं। सामान्यतः इसके विरोध के दो मुख्य कारण समझे जा सकते हैं ।


1) राजनैतिक कारण :- देश के अधिकांश नेता सिर्फ 1,2,3, लोगों को छोड़कर सभी इस CAA के महत्व को समझते हैं । मगर राजनैतिक मजबूरी के कारण इसे स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। उनका उद्देश्य किसी भी तरह से सरकार के लिए मुसीबत पैदा करना है। वास्तव में राजनीति बहुत ही क्रूर होती है अपने प्रतिस्पर्धी को गिराने के लिए यह किसी भी हद तक जा सकती है ।जनता में एक गलत perception .धारण पैदा होना इसका मुख्य कार्य होता है ।


2) संवैधानिक एवं कानून की पूरी जानकारी न होना :- लोगों ने इस कानून को बिना जाने -मुझे यहां तक कि कुछ पढ़े -लिखे लोगों ने भी इसे बिना जाने जनता में एक ऐसा माहौल खड़ा कर दिया कि यह कानून एक खास वर्ग के लिए नुकसान कारक है।  और लोगों ने हिंसक आंदोलन खड़ा कर दिया ।वास्तव में इस कानून के  तहत पाकिस्तान ,बांग्लादेश ,अफगानिस्तान, इन तीन .इस्लामिक देशों में प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को (इसमें हिन्दू ,बौद्ध ,जैन ,सिख , पारसी, ईसाई ) को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है ।और इसके लिए कट -आफ  तारीख 31 दिसंबर 2014 है इसके अलावा अन्य किसी देश के नागरिक को नागरिकता देने का कोई प्रावधान इसमें नहीं है। इस कानून के द्वारा किसी भारतीय नागरिक चाहे वह .किसी भी धर्म का हो अथवा भारत के किसी भी भाग में रहता हो उसकी नागरिकता पर कोई भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ने वाला है ।


.कुछ लोगों का कहना है। कि यह कानून भारत के सविधान की धारा  14 और 15 का उल्लंघन करता है धारा 14 कहती है। कि every citizen is equal before law .इस धारा के अनुसार सभी नागरिक कानून के समक्ष समता ( equality) बराबर है ।तो इसमें मुसलमानों को शामिल क्यों नहीं किया गया ? इसका कारण है कि जिन देशों के अल्पसंख्यकों का जिक्र इसमें किया गया है। उन देशों का राष्ट्रीय धर्म इस्लाम है इसलिए मुसलमान इस देश में अल्पसंख्यकों की श्रेणी में नहीं आते है। इसके अलावा भारत के संविधान की धारा 14,15 एवं 21 किसी दूसरे देश के नागरिकों पर कैसे लागू हो सकती है ।दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि 15 अगस्त 1947 मैं जब देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था तो 14 अगस्त 1947 तब जो लोग संपूर्ण भारत के वेद नागरिक थे वे हिन्दू ,बौद्ध ,जैन, सिख ,पारसी ,ईसाई ,लोग जो इन मुस्लिम देशों में रह गए वे by default 15 अगस्त 1947 को वहां के स्वमेंव नागरिक हो गए उस समय प्रधानमंत्री नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली के बीच एक समझौता हुआ था। कि अपने -अपने देशों में रह गए अल्पसंख्यकों की रक्षा .सुरक्षा वे करेंगे और उनको समान अधिकार देंगे। उनको धार्मिक सामाजिक और राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त होगी मगर ऐसा हुआ नहीं भारत में तो सभी अल्पसंख्यकों का सामान अधिकार मिले मगर पाकिस्तान में इन अल्पसंख्यकों को हिन्दू, बौद्ध , जैन ,सिख, पारसी, ईसाई को धार्मिक और सामाजिक .और जात के आधार पर बुरी तरह से प्रताड़ित किया गया और किया  जा रहा है उनको धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया उनकी बहू -बेटियों के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है ।ऐसी दशा में ये 


प्रताडित लोग आखिर कहां जाएंगे क्योंकि मौलिक रूप से यह अल्पसंख्यक संयुक्त -भारत के मूल नागरिक हैं ।धार्मिक और सामाजिक प्रताडना से उनको पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान छोड़ना पड़ा है भारत की नागरिकता देने के संबंध में एक बात ध्यान देने वाली है ।इन अल्पसंख्यको मैं उनको ही नागरिकता दी जाएगी जो 31दिसंबर 2014 तक भारत में आ चुके हैं। और रह रहे हैं कुछ लोगों का कहना है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में .करोड़ों लोग इस कानून के तहत भारत में नागरिक बनकर आएंगे तो इससे भारत के लोगों की जीविका के संसाधनों को इसके साथ बाटना पड़ेगा इसे ध्यान में रखकर अभी उन्हें लोगों को नागरिकता मिले कि जो 31 दिसंबर 2014 तक भारत में आकर रह रहे हैं ।


.एक अफवाह यह भी उड़ाई जा रही है। कि इन अल्पसंख्यकों को हिन्दू, बौद्ध ,जैन, सिख ,पारसी ,ईसाई के .आज जाने से नान- मुस्लिमों की संख्या बढ़ जाएगी ।इस कारण भारत के अल्पसंख्यकों में भय का वातावरण पैदा होगा .यहाँ यह समझ लेना चाहिए एक संगठित भारतीय राज्य सभी भारतीयों के लिए लाभकारी है। खंड -खंड में बंटे छोटे देश .अपनी  कई प्रकार की आर्थिक और सामरिक समस्याओं से जूझ रहे हैं आज के इस भूमंडलीकारण के युग में बड़े राष्ट्र  छोटे राष्ट्रों का कई प्रकार से दोहन कर रहे हैं उदाहरण के लिए श्रीलंका को लीजिए वो चीन के कर्ज में ऐसा फंसा है कि उसे अपना हम्बनटोटा पोर्ट  और उसके आसपास की जगह ( hambantota port )चीन को 99 वर्ष के लिए लीज पर देना पड़ा आज मालदीव ,मलेशिया, पाकिस्तान जिबूती आदि कई छोटे देश हैं जो चीन कर्ज के बोझ के तले दबे होने के कारण अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। दक्षिण एशिया के कुछ देश की कई हद तक आर्थिकरूप से चीन पर आश्रित होते जा रहे हैं दक्षिण एशिया के ये देश संगठित होकर इस समस्या का मुकाबला करने के लिए आज बडी आशा से भारत के और देख रहे हैं ।


देश के हर नागरिक को एक बार ठीक से समझ लेना चाहिए की नागरिकता उनको ही दी जाती है ।जो शरणार्थी के रूप में किसी दूसरे देश से विशेष परिस्थितियों के कारण भारत में आए हैं वे शरणार्थी होते हैं और और घुसपैठिये है। वो कहलाते हैं जो .देश में बिना दस्तावेज के साथ बिना अनुमति के देश में आ जाते हैं उनको पकड़ कर डिटेंशन सेंटर (detention center )में रखा जाता है नागरिक संशोधन अधिनियम 2019 मैं जो प्रावधान है। उसके अनुसार पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हुए धार्मिक आधार पर प्रताड़ित हिंदू बौद्ध   जैन सिख पारसी ईसाई जो भारत में 31 दिसंबर 2014 तक भारत में आ चुके हैं और रह रहे हैं उनको ही भारत की नागरिकता की जा सकेगी इस अधिनियम के कारण किसी भारतीय नागरिक की नागरिकता पर किसी प्रकार का कोई असर नहीं पड़ेगा बिना समूचीत जानकारी के अधिनियम  .का विरोध करना अथवा इसे  npr राष्ट्रीय जनगणना रजिस्टर्ड अथवा ncr राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर से जोड़ना किसी भी दशा में उचित नहीं है। npr एवं ncr दोनों राष्ट्रीय स्तर पर जुटाई जाने वाली अलग प्रकार की ऐसी जानकारी है जिसका सीधा संबंध राष्ट्र की एकता अखंडता और राष्ट्र की जनता के विकास के लिए अति आवश्यक है ।