डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार

डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार             बलिराम हेडगेवार ___महाराष्ट्र के नागपुर महानगर में रहने वाले वेद विद्या विशारद, कर्मनिष्ठ, परोपकारी, बलिराम पंत हेडगेवार के यहाँ रेवती माता के गर्भ से चैत्र शुक्ल वर्ष प्रतिपदा प्रातःकाल " अप्रैल १८८६ में पुत्र उत्पन्न हुआ। नाम केशव रखा गया। वह तीन भाईयों में सबसे छोटे थे। तीन बहिनें भी थीं। हेडगेवार परिवार मूलतः आन्ध्रप्रदेश के गोदावरी, हरिद्रा और वनजरा नदी के संगम पर बसे गाँव कुन्दकुर्ती के निवासी थे। इनमें सबसे बड़े भाई महादेव शास्त्री व उनसे छोटे का नाम सीताराम था। पिताजी प्रतिदिन अग्निहोत्र करते थे। केशव ने भी गीता, रामायण, महाभारत व समर्थ गुरु रामदास के मनोबोध श्लोकों में गहरी रुचि के कारण अनेक पाठ कण्ठस्थ कर लिए थे। रामरक्षा स्तोत्र कंठस्थ कर प्रतिदिन दोहराते। वह कुशाग्र बुद्धि के कारण साहसी मनोवृत्ति के थे। २२ जुलाई १८६७ विक्टोरिया के राज्यारोहण के ६० वर्ष पूरे होने पर जब सम्पूर्ण देशभर के विद्यालयों में खुशी की मिठाईयाँ बाँटी जा रही थीं तब अपने विद्यालय की मिठाई यह कहकर घृणापूर्वक फेंक दी "इस मिठाई को खाना अपने देश के प्रति द्रोह करना है।" १६०१ में जब सातवाँ एडवर्ड इंग्लैण्ड का राजा बना तब मुहल्ले के सभी बच्चे खुशी मना रहे थे तब केशव ने कहा “वह हमारे नहीं शत्रुओं के राजा हैं।" १६०२ में नागपुर में प्लेग की महामारी में अन्यों की सेवा करते-करते स्वयं भी बीमारी की चपेट में आ गये और माता-पिता दोनों एक ही दिन स्वर्ग सिधार गये। अंग्रेजों ने 'वन्दे मातरम्' के उद्घोष पर प्रतिबंध लगा दिया था। केशव ने नील सिटी हाईस्कूल में छात्रों का संगठन किया। शाला निरीक्षक के स्वागत में 'वन्दे मातरम्' उद्घोष प्रत्येक कक्ष में लगाये जाने से अंत में इन्हें विद्यालय से निकाल दिया गया। आगे की पढ़ाई के लिए यवतमाल में बाबा साहब परांजपे की राष्ट्रीय पाठशाला “विद्यागृह" में प्रवेश लिया जो १६०६ में अंग्रेजों की दमन नीति के कारण बंद हो गयी। तब केशव दो माह तक शंकराचार्य मठ में रहे। अपनी शालान्त परीक्षा अमरावती में उत्तीर्ण की। केशवराव ने मन में दो बातें ठान ली थीं। एक तो उन्हें बंगाल जाना था दूसरा चिकित्सा की पढ़ाई में जनसेवा, प्रतिष्ठा और अर्थप्राप्ति तीनों का समन्वय था। डॉ. मुंजे के सहयोग से कलकत्ता के नेशनल मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिल गया। पढ़ाई के साथ क्रांतिकारियों से सम्बन्ध बन गये। प्रतिज्ञाबद्ध हो क्रांतिवादी दल 'अनुशीलन समिति' के सक्रिय सदस्य बन गये। सुगठित शरीर वाले केशव के सामने अमूल्य रत्नघोष जो अपने का बड़ा बलवान मानता था, गर्व से कहने लगा, तुम मुझे मक्का मारो तब केशव ने कहा कि पहल आप मुझे मारो, तब उसने पूरी ताकत से मुक्के मारना शुरू किया। अन्त में थककर वह केशव राव का प्रशंसक बन गया। गंगाजी में तैरना पसंद था। वह दक्षिणेश्वर, वेलूर मठ और शान्ति निकेतन जाया करते थे। चिकित्सा में एल.एम. एण्ड एस. की उपाधि प्राप्त करने के बाद ब्रह्मदेश से नौकरी का आमंत्रण मिला जिसे उन्होंने यह कहकर ठुकरा दिया “मैंने अपने आपको भारत माता की सेवा में अर्पित कर दिया है। मैं नौकरी कभी नहीं करूंगा।" वह वापस नागपुर आ गये। अनुशीलन समिति ने उन्हें मध्यप्रदेश और विदर्भ का कार्य सौंपा था। १६१४ से १६१र तक चले प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की विजय हो गयीअब अंग्रेजों के अत्याचार और बढ़ गये। १९२० में राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में भोजन व्यवस्था की जिम्मेदारी संभाली। उसी वर्ष १ अगस्त को लोकमान्य तिलक का निधन हो गया। १६२१ के गांधी के नेतृत्व में चलाये गये आन्दोलन में गाँव-गाँव घूमकर ओजस्वी भाषण दिये। अंग्रेजों ने मुकदमा चला एक वर्ष की सश्रम कठोर कारावास की सजा दी जिसे काटकर वह १२ जुलाई १६२२ को वापस आ गये। भारत की गुलामी के बारे में जब डॉ.साहब ने विचार किया तो पाया कि जब तक इस देश के लोग संगठित थे तब तक यदि किसी ने आक्रमण किया तो वह असफल ही हुआ। इसलिये हमारी गुलामी का कारण शक्ति नहीं संगठन का अभाव कारण है। वह सोचते कि अब बहुत समय तक अंग्रेज भारत में शासन नहीं कर सकते हैं। भारत स्वतंत्र होगा। पर क्या गारंटी है कि फिर गुलाम नहीं होगा। जब तक मरी कुतिया कुएँ में पड़ी रहेगी तब तक पानी से दुर्गन्ध आती ही रहेगी। असंगठन रूपी कुतिया भारत रूपी कुएँ से निकालना ही भारत की आजादी की गारंटी है। ऐसा सोचकर २७ सितम्बर रविवार सन् १६२५ को पढ़ने वाले छात्रों को साथ ले सरदार मोहिते के वाड़े (मकान) में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। सालू बाई मोहिते के बाड़े में संघ की शाखा शुरू की गयी। संघ शाखाएँ नागपुर के दूसरे स्थानों पर भी प्रारम्भ हो गयी। संघ कार्य बढ़ाने के लिये शाखा में आने वाले स्वयंसेवकों को देश के अन्य भाग लाहौर, दिल्ली, लखनऊ, पटना, कलकत्ता, मद्रास, पूना, मुम्बई, अहमदाबाद, जयपुर आदि स्थानों पर भेज दिया। जहाँ पढ़ाई के साथ उन्होंने संघ शाखाएँ प्रारम्भ की। संघ के बढ़ते प्रभाव को देख अंग्रेज शासक सतर्क हो गये। १६३० में गांधीजी द्वारा नमक सत्याग्रह किया गया पर मध्यप्रदेश में समुद्र न होने से बापू ने जंगल सत्याग्रह प्रारम्भ किया। २२ जुलाई १६३० डॉ. साहब ने सैकड़ों स्वयंसेवकों के साथ यवतमाल में सत्याग्रह किया जिससे नौ मास की सजा सुनायी गयी। १४ फरवरी १६३१ को कारागार से मुक्त हो पुनः संघ कार्य में जुट गये। महात्मा गांधी अस्पृश्यता को मिटाना चाहते थे। दिसम्बर १६३४ में वर्धा महाराष्ट्र के जमनालाल बजाज के बगीचे में लगे संघ के शिविर में गांधीजी पधार आर छुआछूत रहित वातावरण देख डॉ. साहब से बोले," जिस कार्य को हम करना चाहते थे उसे डॉ. हेडगेवार ने कर दिखाया।" १६३७ में लगे पूना के वर्ग में डॉ. आम्बेडकरजी पधारे तो उन्होंने भी ऐसा दृश्य देखा। १६४० में पूना और नागपुर में संघशिक्षा वर्ग चल रहे थे। डॉ. साहब अत्यन्त परिश्रम के कारण बीमार हो गये। ६ जून १६४० को कुर्सी पर बैठकर ही स्वयंसेवकों को निहारा और बोले "क्षमा करें मैं न आपसे मिल सका न आपकी सेवा कर सका। अपने जीवन में यह कहने का कुअवसर मत आने दीजिये कि मैं भी कभी संघ का स्वयंसेवक था, हूँ और रहूँगा।" बीज के रूप में बोये वृक्ष को अपनी आँखों से ही लघु भारत के रूप को देखने वाले डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने २१ जून १६४० को प्रातः ६ बजकर २७ मिनिट पर अपना शरीर छोड़ दिया और महाज्योति में विलीन हो गये