श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर

  श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर                                राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवारजी की कल्पना को साकार रूप देने वाले परम पूजनीय श्री गुरुजी का जन्म नागपुर में १६ फरवरी १६०६ माघ शुक्ल एकादशी को सदाशिव-बालकृष्ण गोलवलकर के घर माता लक्ष्मीबाई के उदर से हुआ। नवजातावस्था में मर जाने वाले आठ भाई-बहनों के बाद इनका जन्म हुआ। इनका नाम 'माधव' रखा गया परन्तु लोग इन्हें प्यार से 'मधु' कहते थे। विलक्षण प्रतिभा के धनी माधव ने चन्द्रपुर से १६२२ ई. में मैट्रिक और नागपुर से १६२४ ई. में मिशन द्वारा संचालित हिस्लाप कॉलेज से इंटर साईंस की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। मेडीकल कॉलेज लखनऊ में प्रवेश न मिल पाने के कारण काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में बी.एस-सी. में प्रवेश ले १६२६ में पास कर १६२६ में प्राणिशास्त्र से एम.एस-सी. प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर वहीं प्राणिशास्त्र के प्राध्यापक नियुक्त हो गये। उसी विश्वविद्यालय में संघ की योजना से पढ़ने गये भैयाजी दाणी के माध्यम से डॉ. हेडगेवार के काशी प्रवास के समय श्री गुरुजी सम्पर्क में आये। उनकी प्रेरणा से काशी की शाखा में कभी-कभी जाने लगे। इन्हीं दिनों में गुरुजी ने वेद, उपनिषद् सहित सभी प्रमुख धर्माचार्यों सहित थियोसोफिकल सोसायटी ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित धर्मग्रंथों का भी अध्ययन कर लिया। स्वामी विवेकानन्द के विचारों का गुरुजी पर गहरा प्रभाव पड़ा। सन् १६३३ में डॉ. साहब की भेंट के कारण संघ दर्शन व अनुशासन से प्रभावित होकर महामना मदनमोहन मालवीय ने संघ कार्यालय के लिए एक भवन विश्वविद्यालय परिसर में ही बनाकर दे दिया। इसी वर्ष डॉ. हेडगेवारजी के सम्पर्क और प्रध्यापक पद की तीन वर्ष की कार्य मर्यादा समाप्त होने के कारण वे काशी से नागपुर वापस आ गये। १६३४ नागपुर की तुलसीबाग शाखा में नियुक्त हुए व कुछ काल के लिए प्रचारक के रूप में मुम्बई में उन्होंने कार्य किया। इसी वर्ष अकोला (विदर्भ) के संघ शिक्षा वर्ग का गुरूजी को सर्वाधिकारी नियुक्त किया गया। १६३५ में एल-एल.बी. की परीक्षा पास कर ली पर वकालत में मन न लगा। सन् १६३६ के दीपावली के सात-आठ दिन पहले श्रीगुरुजी नागपुर छोड़ कोलकाता से एक सौ बीस मील दूर मुर्शिदाबाद जिले के सारगाछी आश्रम में विवेकानंद के गुरु भाई स्वामी अखण्डानंदजी के पास पहुँच गयेमकर संक्रांति १३, जनवरी १६३७ को स्वामीजी ने गुरुजी को मंत्र दीक्षा दी और फरवरी और फरवरी १६३७ में ही स्वामीजी की इहलीला समाप्त हो गयी। मार्च १६३७ के अंतिम सप्ताह में गुरुजी नागपुर वापस आ गये। सन् १६३८ में नागपुर में संघ शिक्षा वर्ग में डॉ. साहब ने गुरुजी को सर्वाधिकारी नियुक्त कर दिया था। अगस्त १६३६ को नागपुर में ही सम्पन्न गुरुदक्षिणा व रक्षाबंधन के कार्यक्रम में डॉ. हेडगेवारजी ने श्री माधवराव को सरकार्यवाह घोषित कर दिया। प्रतिदिन आठ घण्टे बैठकर विचार करने वाली फरवरी १६३६ की 'सिंदी' की बैठक में श्री गुरुजी पूरे समय रहे जिसमें संविधान, संघस्थान, आज्ञाएँ, कार्यपद्धति, प्रतिज्ञा, प्रार्थना इत्यादि संघ कार्य के अंग-प्रत्यंगों पर व्यापक विचार कर निर्णय लिये गये। डॉ. साहब ने गुरुजी को शाखा स्थापना के लिये कोलकाता भेजा, जहाँ गुरुजी ने अथक परिश्रम कर २२, मार्च १६३६ वर्ष प्रतिपदा पर शाखा प्रारम्भ कर दी। सरकार्यवाह बनने के बाद डॉ. साहब की योजना से गुरुजी ने देश के हर प्रांत के प्रमुख नगरों में प्रवास किया। १६४० के संघ शिक्षा वर्ग में गुरुजी ही सर्वाधिकारी नियुक्त हुए। ६ जून १६४० को डॉ. साहब शिक्षा वर्ग के स्वयंसेवकों से मिले और उद्बोधन देने के पश्चात् गुरुजी को सम्बोधित करते हुए कहा “अब संघ कार्य का भार आपको ही संभालना है, इतना आप मान लें। इस देह की मुझे चिंता नहीं। २१, जून १६४० को प्रातः ६.२७ पर डॉ. केशव बलिराम हेडगेवारजी का दुःखान्त निधन हो गया। ३, जुलाई १६४० को रेशिमबाग पर महत्त्वपूर्ण समारोह में नागपुर प्रान्त संघचालक ने सरसंघचालक के पद पर श्री माधवराजी की घोषणा के बाद सर संघचालक प्रणाम दिया। १६४७ के भारत विभाजन के कारण पाकिस्तान से पचास लाख हिन्दुओं का सुरक्षित भारत वापस लाने व मुस्लिम लीग के षड्यंत्र को असफल कर केन्द्रीय नेताओं के जीवन की सुरक्षा की। गाँधी हत्या का झूठा आरोप संघ के ऊपर लगने से गुरुजी को १, फरवरी १६४८ को पकड़कर जेल में डाल दिया गया४, फरवरी को संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। ६, दिसंबर १६४८ से २१ जनवरी १६४६ तक सत्याग्रह कर ६० हजार स्वयंसेवकों ने अपनी गिरफ्तारियाँ दीं। परिणास्वरूप १२ जुलाई १६४६ को संघ से प्रतिबंध हटते ही १३ जुलाई १६४६ को बैतूल कारागार से श्री गुरुजी को मुक्त कर दिया गया। श्री गुरुजी की प्रेरणा से गोरक्षा का प्रभावी आंदोलन सफल रहा। समाज जीवन के अनेक क्षेत्रों में कार्य प्रारम्भ हआ। जिसमें विद्यार्थी परिषद्, विद्याभारती, वनवासी कल्याण आश्रम, जनसंघ, भारतीय मजदूर संघ, भारत विकास परिषद्, विश्व हिन्दू परिषद्, अ.भा.साहित्य परिषद्, दीनदयाल शोध संस्थान व भारतीय शिक्षण मण्डल सहित अनेक क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं ने कार्य प्रारम्भ किये, जिनमें से कई संगठन भारत में प्रथम स्थान पर हैं। प्रबल हिन्दू संगठन द्वारा मानव समाज के कल्याण का कार्य करते-करते ३३ वर्ष तक देश का ६६ बार भ्रमण करने वाले श्री गुरुजी ने कर्क रोग से पीड़ित होने पर तीन पत्र लिखे। ५ जून १६७३ को ६७ वर्ष की आयु में रात्रि ६ बजकर ५ मिनिट पर दीर्घ श्वास खींचकर श्री गुरुजी ने अपनी इहलोक की यात्रा पूर्ण ६ बजकर की। की।