संस्कृत के बिना भारत की कल्पना नहीं की जा सकती

संस्कृत के बिना भारत की कल्पना नहीं की जा सकती : नायडू




 



 




  

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संस्कृत को 'भारतीय भाषाओं को जोड़ने वाली कड़ी' बताते हुए उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने रविवार को कहा कि इसके (संस्कृत) बिना भारत की कल्पना नहीं की जा सकती।










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उपराष्ट्रपति कार्यालय की ओर से जारी एक बयान के अनुसार नायडू ने 10वीं कक्षा तक मातृभाषा में शिक्षा पर बल देते हुए कहा कि सरकारों को इस दिशा में प्रयास करने चाहिये। उन्होंने कहा, ''अंग्रेजी सीखने में कोई हर्ज नहीं है लेकिन नींव मातृभाषा में ही होनी चाहिये।'' नायडू ने विश्व की प्राचीनतम भाषाओं में शुमार संस्कृत के प्रसार की दिशा में कार्यरत संस्था संस्कृत भारती द्वारा यहां आयोजित विश्व सम्मेलन को संबोधित करते हुये कहा, ''संस्कृत भारतीय भाषाओं को जोड़ने वाली कड़ी का काम करती है क्योंकि अधिकांश भारतीय भाषाएं इसी से जन्मी हैं। हम संस्कृत के बिना भारत की कल्पना नहीं कर सकते। जब तक हम संस्कृत नहीं सीखेंगे, तब तक भारत की सांस्कृतिक विरासत की गहराई और भव्यता का अहसास नहीं कर सकते।''


उन्होंने कहा कि आज पर्यावरण की समस्या है। जल नियोजन की समस्या है। आरोग्य की समस्यायें है। इन विषयों में संस्कृत में बहुत कुछ हैं। दुनिया के अनेक देशों में इसके लिए ही संस्कृत का अध्ययन लोग करते हैं। इन विषयों में अनुसंधान भी करते हैं। हमारे शिक्षण संस्थानों को भी ऐसे अनुसंधान करना चाहिये।


संस्कृत को भारत को जोड़ने वाली भाषा बताते हुए नायडू ने कहा कि भारतीय ज्ञान विज्ञान परंपरा संस्कृत भाषा में है। उन्होंने कहा, ''भारतीय ज्ञान, विज्ञान संस्कृत भाषा में है। चाणक्य की राजनीति, भास्कराचार्य का गणित, आयुर्वेद, योग, आदि विषय संस्कृत में विकसित उपराष्ट्रपति ने संस्कृत में उपलब्ध ज्ञान के विशद भंडार को मौजूदा दौर में भी उपयोगी बताते हुये इसके सदुपयोग की अपील की। नायडू ने कहा, ''इसी ज्ञान विज्ञान के बल पर हमारे पुरखों ने कभी देश को समृद्ध किया था। हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा विकसित इस ज्ञान भंडार का हमें आज उपयोग करना चाहिए।


नायडू ने कहा कि हम सभी को संस्कृत सीखनी चाहिए ताकि हम अपने समृद्ध अतीत से जीवंत संपर्क बनाए रखें और 'भारतीय' होने का सही अर्थ समझ सकें।


इस दौरान उन्होंने संस्कृत भारती द्वारा विश्व सम्मेलन में लगायी गयी पांडुलिपियों की प्रदर्शनी में संस्कृत पांडुलिपियों का अवलोकन किया। इस अवसर पर विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी मंत्री डा. हर्षवर्धन भी मौजूद थे।


इस सम्मेलन में विश्व के 21 देशों से चार हजार प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। सम्मेलन का उद्देश्य संस्कृत को व्यवहार की भाषा के रूप में लोकप्रिय बनाना है।