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भारत के इतिहास में सबसे अधिक समय तक चलने वाले केस का नतीजा अब मुहाने पर खड़ा है। राम मंदिर पर कोर्ट का फैसला 17 नवंबर तक किसी भी दिन आ सकता है। पूरा देश इस मुद्दे के नतीजे जानने के लिए टकटकी लगाए बैठा है।
इन सब के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कोर्ट के फैसले के बाद किसी भी तरह के उत्सव मनाने और बयानबाजी करने से मना किया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने स्वयंसेवकों को किसी भी तरह के जश्न और कार्यक्रम करने से भी बचने को कहा है।
राम मंदिर-बाबरी ढांचा विवाद इस देश में एक बड़ा मुद्दा है। साम्प्रदायिक सौहार्द्र ना बिगड़े इसकी जिम्मेदारी पूरी तरह देश के नागरिकों की है। इसी दिशा में बढ़ते हुए संघ ने सौहार्दपूर्ण माहौल बनाए रखने के लिए अपने कार्यकर्ताओं को यह संदेश दिया है।
इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी ने भी अपने केंद्रीय मंत्रियों, राज्य के मंत्रियों और नेताओं को उत्तेजक बयानबाजी से बचने को कहा है। इन सब के अलावा संत समाज और राम मंदिर के लिए आंदोलन का नेतृत्व करने वाले विश्व हिंदू परिषद ने भी समाज में सौहार्द बनाए रखने की अपील की है।
अपने कार्यकर्ताओं को दिशा देने के अलावा आरएसएस ने अन्य दलों, सामाजिक संगठनों और मुस्लिम समुदाय के नेताओं से भी मुलाकात की है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इस कृत्य के बाद तमाम मुस्लिम नेताओं ने भी अपने समाज में लोगों को संयम बरतने और कोर्ट के निर्णय को मानने के लिए अपील किया है।
संघ का कहना कि “निर्णय को हार-जीत नहीं देखना है, और जीत का जश्न नहीं मनाना है।” इसके संघ के तरफ प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से यह भी समझाईश दी गई है कि ऐसा कोई भी कृत्य ना हो जिससे किसी समुदाय की भावनाएं आहत हो।
इन सब में खास बात यह है कि, जो हिन्दू समाज पिछले 500 वर्षों से अपने आराध्य के लिए संघर्ष कर रहा हो, जो आरएसएस पिछले 4 दशकों से राम मंदिर के लिए आंदोलन और जनजागरण का काम कर रहा हो, वह संगठन और समाज आज भी देश की एकता बनाए रखने के लिए इसे “जीत मानकर जश्न नहीं मनाने को तैयार है।”
राम मंदिर भारत की अस्मिता के लिए आवश्यक है लेकिन आरएसएस ने जो पहल किया है उससे यह भी स्पष्ट है कि भारत की अस्मिता के साथ साथ भारत की एकता और भाईचारा भी बनी रहनी चाहिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इस पहल के बाद तमाम मुस्लिम और हिन्दू संगठनों ने शांति की अपील की है।
संघ और संत समाज द्वारा “जश्न नहीं मनाना”, “सभा नहीं करना”, “उत्सव नहीं मनाना”, कहना समाज और संगठन की उदारता और परिपक्वता को दर्शाता है।
उदाहरण के तौर पर यदि किसी व्यक्ति (आप या मैं भी हो सकते हैं) ने वर्षों किसी चीज के लिए संघर्ष किया हो, उसके लिए शासन, प्रशासन, कानूनी लड़ाइयां लड़ी हो, सैकड़ों बलिदान दिए हो, इसके बाद यदि वह चीन प्राप्त हो तो क्या हम जश्न नहीं मनाएंगे ? क्या हम जीत की खुशियां नहीं मनाएंगे ?
लेकिन एक परिपक्व और राष्ट्र के एक एक जनता की भावना का ख्याल रखते हुए जश्न और उत्सव नहीं मनाने और हार-जीत नहीं देखने का यह निर्णय एक सकारात्मक पहलू है। यह देश में आपसी सौहार्द बढ़ाने का ही काम करेगा। संघ द्वारा की गई यह पहल प्रशंसनीय है।