जम्मू-कश्मीर के बंटवारे का प्रस्ताव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने 2002 में ही अपनी अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में पास किया था. जिसे 17 साल बाद मोदी सरकार ने हकीकत में बदला है।
मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर के बंटवारे को लेकर जो विधेयक राज्यसभा में पेश किया है, उसकी नींव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने 19 साल पहले ही डाल दी थी. तब संघ के लिहाज से देश में वाजपेयी की अनुकूल सरकार तो थी, मगर पूर्ण बहुमत का अभाव था.
लिहाजा दो दर्जन सहयोगी दलों के साथ सरकार चला रहे अटल बिहारी वाजपेयी संघ के इस एजेंडे को चाहकर भी हकीकत नहीं बना सकते थे. ऐसे में आरएसएस के इस अहम प्लान को धरातल पर नहीं उतारा जा सका. मगर, 2019 के लोकसभा चुनाव में 2014 से भी प्रचंड बहुमत से जीतकर आई मोदी सरकार ने आरएसएस के इस प्लान को अब हकीकत बना दिया।
संघ ने बताया साहसिक फैसला
जम्मू-कश्मीर में लागू अनुच्छेद 370 के तहत विशेषाधिकार प्रदान करने वाले प्रावधानों को हटाने और लद्दाख को अलग करने के सरकार के निर्णय की संघ ने सराहना की है. संघ प्रमुख मोहन भागवत और सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी ने इसे साहसपूर्ण कदम बताया है. उन्होंने कहा," सरकार के साहसपूर्ण कदम का हम हार्दिक अभिनंदन करते हैं. यह जम्मू-कश्मीर सहित पूरे देश के हित के लिए अत्यधिक आवश्यक था. सभी को अपने स्वार्थों एवं राजनीतिक भेदों से ऊपर उठकर इस पहल का स्वागत और समर्थन करना चाहिए.''
2002 की बैठक में संघ ने पारित किया था प्रस्ताव
बात 2002 की है. जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक हरियाणा के कुरुक्षेत्र में हुई थी. तीन दिनों तक चलने वाली इस बैठक में यूं तो कई प्रस्ताव पास हुए थे, मगर सबसे पहला प्रस्ताव जम्मू-कश्मीर के बंटवारे को लेकर पास हुआ था.
बैठक में कहा गया था कि धारा 370 के प्रावधानों से जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद को बढ़ावा मिल रहा है. वहां की स्थानीय सरकार जम्मू और लद्दाख रीजन के निवासियों के साथ भेदभाव करती है. जिससे जम्मू और लद्दाख के निवासी अलग-अलग राज्य की मांग करते हैं
संघ की 2002 में हुई अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में जम्मू-कश्मीर के बंटवारे को लेकर पास प्रस्ताव के अंश.
इसके बाद संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित हुए कहा था,"जम्मू की जनता चाहती है कि अलग राज्य बनने से उसकी समस्याओं का समाधान हो सकता है. संघ इस मांग का समर्थन करता है. इसके अलावा लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग पर भी प्रतिनिधि सभा सहमति व्यक्त करती है. इस बैठक में कश्मीरी पंडितों की घर वापसी का प्रस्ताव भी पास किया था. अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने तत्कालीन केंद्र और राज्य सरकार से अपील करते हुए कहा था कि वे पीड़ित कश्मीरी पंडित परिवारों से संवाद कर उनकी घर वापसी का प्रबंध करें.
संघ ने जस्टिस गुप्ता के नेतृत्व में बनाई थी कमेटी
संघ ने 2002 की बैठक में यूं ही जम्मू-कश्मीर के बंटवारे का प्रस्ताव नहीं पास किया था. बल्कि इससे पहले काफी होमवर्क भी किया था. आरएसएस ने बैठक से एक साल पहले ही जस्टिस जितेंद्र वीर गुप्ता की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग टीम गठित की थी. इस कमेटी ने आरएसएस को सौंपी रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की थी कि राज्य सरकार जम्मू और लद्दाख की जनता के साथ भेदभाव कर रही है. कमेटी ने अलग राज्य बनने पर जम्मू और लद्दाख की जनता के साथ न्याय होने की सिफारिश की थी.
जिसके बाद संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने जम्मू-कश्मीर के बंटवारे के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी. अंतर इतना है कि मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के रूप में दो केंद्र शासित प्रदेश बनाने की तैयारी की है. जबकि संघ के प्रस्ताव में जम्मू और लद्दाख को अलग-अलग राज्य बनाने की बात कही गई थी।