हमारी भारत माता

                                  भारत माता     यह हमारी भारत माता है, हमारी प्यारी जन्म भूमि है इसका वर्णन करते हुए शास्त्रकारों ने कहा हैउत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।। वर्ष तद् भारतं नाम भारती यत्र संतति।;3mविष्णु।अर्थात् जो समुद्र के उत्तर तथा हिमालय के दक्षिण में स्थित है वह देश भारतवर्ष कहलाता हैउसमें बसी हुई उसकी सन्तान को भारती कहते हैंऋषियों ने इसको सुरलोक से भी अनुपम बताया है। कि जहाँ जन्म लेने के लिए देवता भी लालायित रहते हैं -                                                                गायन्ति देवा किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारत भूमि भागे। स्वर्गापवर्गा स्पदहेतुभूते, भवन्ति भूय पुरषासुरत्वात्।। (विष्णु-2/3/24)           अर्थात देवता लोग भी निरन्तर यही गाया करते हैं कि जिन्होंने स्वर्ग और मोक्ष के मार्गभूत भारतवर्ष में जन्म लिया है, वे पुरुष हम देवताओं की अपेक्षा अधिक सौभाग्यशाली हैं। यही वह पुण्यभूमि है जिसका कण-कण, ज्ञान भक्ति और तपोमय कर्म से पावत्र हुआ है। यहीं परमेश्वर ने दस अवतार धारण कर बार-बार अवतरित होकर विश्व का कल्याण किया।  धारण इसी पुण्य भुमि के लिये भगवान् रामचन्द्र ने लंका के राज्य को अस्वीकार करते हुए कहा था                                                              अपि स्वर्णमयी लंका, न में लक्ष्मण रोचते। जननी जन्मभूमिश्च, स्वर्गादपि गरीयसी।। अत्यंत महिमामयी है हमारी यह मातृभूमि। इसकी गौरवमण्डित संस्कृति सम्पूर्ण विश्व को अपने ज्ञान से आलोकित कर विश्व गुरु का गौरव प्राप्त कियाहमारी इस प्यारी मातृभूमि का स्वरूप विश्व में सबसे सुन्दर है। उत्तर में अडिग प्रहरी नगाधिराज हिमालय के उत्तुंग भाल पर भगवान शंकर का कैलाश, जन-मन की मोहित करने वाली विश्व की अत्युत्तम झील मानसरोवर, ललाट में स्थित पथ्वी की स्वर्ग कश्मीर की अनुपम छटा, पश्चिम में अरावली की पर्वत मालाएँ एवं लहराता सिंध सागर, पूर्व में असम की मनोहर छटा, मध्य प्रदेश में करधनी की भाँति सशोभित विंध्याचल पर्वतमाला तथा दक्षिण में अहर्निश माँ के चरणों का प्रक्षालन करती हिन्द महासागर की उत्ताल तरंगें। तरंगें। भारत माता की वंदना करते हुए हम अपने राष्ट्रगीत के माध्यम से अपनी मातृभूमि का सुन्दर वर्णन करते हैं |                           वन्दे मातरम्। सुजला सुफलां मलयजशीतलाम्। शस्य श्यामला मातरम्। शुभ्र ज्योत्स्ना पुलकित् यामिनीममी फुल्ल-कुसुमित-दुमदल-शोभिनीम् । सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम् I सुखदां वरदां मातरम्।। वन्दे मातरम्। भारत माता की उपासना ही हम सब भारतीयों का परम धर्म हैत्वं ही दुर्गा दशप्रहरण-धारिणी कमला कमलदल विहारिणी वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वां। नमामि कमला अमला अतुलाम् सुजला सुफला मातरम्।।। वन्दे मातरम्।।                                                    अद्भुत है हमारी भारत माता का स्वरूप। इसका विशाल हृदय विश्व की समस्त ऋतुओं को संजोए है। यहाँ ऋतु अनुरूप खान-पान की विविधता, भाषा तथा वेश-भूषा में भी देखी जा सकती है। इसलिए एकात्मता स्त्रोत में हम माता की वन्दना करते हुए गाते हैंरत्नाकराधौतपदा हिमालय किरीटिनीम। ब्रह्मराजर्षि रत्नाढ्यां, वन्दे भारतमातरम्।। सागर जिसके चरण धो रहा है, हिमालय जिसका मुकुट है और जो ब्रह्मर्षि तथा राजर्षि रूपी रत्नों से समृद्ध है, ऐसी भारत माता की मैं वन्दना करता हूँमहेन्द्रो मलयः सह्यो, देवतात्मा हिमालयः ध्येयो रैवतको विध्यो, गिरिश्चारावलिस्तथा।। महेन्द्र, मलयगिरि, सह्याद्रि, देवतात्मा हिमालय, रैवतक (गिरनार) विंध्याचल तथा अरावली पर्वत ध्यान करने योग्य हैं। गंगा सरस्वती सिंधुब्रह्मपुत्रश्च गण्डकी। कावेरी यमुना रेवा कृष्णा गोदा महानदीये नदियां भारतमाता के गले का हार हैंअयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवंतिकावैशाली, द्वारिका, ध्येया, पुरी, तक्षशिला, गया प्रयागः पाटलीपुत्रं, विजया नगरं महत्इन्द्रप्रस्थः, सोमनाथः तथाऽमृतसरः प्रियम्।।                                                    उपर्युक्त नगर हमारी भारत माता की शोभा हैं। इसी माता की गोद में बैठकर ऋषियों, मनीषियों तथा कवियों ने चार वेद, अठारह पुराण, एक सौ आठ उपनिषद् तथा रामायण, महाभारत, श्रीमद्भगवद्गीता, जैन ग्रन्थ, त्रिपिटक तथा गुरू ग्रंथ जैसे ग्रन्थों की रचना की। भारत माता की प्रशंसा जितनी की जाए, उतनी ही कम है। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर इसकी समन्वित संस्कृति की महिमा का गायन करते लिखते हैं              हे मोर चित्त पुण्य तीर्थे जागो रे धीरे                                                  एई भारतेर महामानवेर सागर तीरे                                                      केह नाहिं जाने, कार आह्वाने, कत मानुषेर धारा                                  दुार स्त्रोतों एलो कोना हते, समुद्र हलो हारा।                                        इसका आशय है कि भारत महामानवता का पारावार है। ओ मेरे हृदय! इस पवित्र तीर्थ में श्रद्धा से आँखें खोलो। किसी को भी ज्ञात नहीं कि किसके आह्वान पर मनुष्यता की कितनी निर्बाध वेग से बहती हुई, कहाँ-कहाँ से आई और इस महासमुद्र में मिलकर खो गई। ऐसी है हमारी भारत माता।                                                                                          आर्षभ भरत के नाम पर इस भूमि का नाम भारत हुआ। राजा भरत भगवान ऋभवदेव जी के ज्येष्ठ पुत्र थे। विष्णु पुराण में ऐसा उल्लेख आता है (1;2/32) कि ऋषभदेव जी ने वन जाते समय अपना राज्य भरत जी को दिया था; अत: तब से यह इस लोक में भारतवर्ष नाम से प्रसिद्ध हुआ। वे एक चक्रवर्ती सम्राट थे। सम्पूर्ण भारत को एकता सूत्र में बांधकर, उन्होंने स्वराज्य की स्थापना की। एक सम्प्रदाय के मतानुसार शकुन्तला-दुष्यंत पुत्र भरत के नाम पर ही हमारे देश को भारत माना जाता है।