तेरे आवाहन से डर जाऊं,ये स्वभाव नहीं है मेरा।

तेरे आवाहन से डर जाऊं,ये स्वभाव नहीं है मेरा।


प्रबल ज्वाला, बुलंद हिम्मत बहती है, इन रगों में।


बुजदिली.भीरूता एवं कायरता नहीं है, इन नसों में।।


तेरे आवाहन से डर जाऊं,ये स्वभाव नहीं है मेरा।


लहू की आखिरी बूंद तक लड़ेंगी, यह वचन है, मेरा।।


शांत भी हूँ..सहनशील भी हूँ. मगर गरजती भी हूँ मैं।


सुन कर रूह कांप उठेगी तेरी, ऐसा दहाड़ती भी हूँ मैं।।


मेरी दृढ़ता को लांघे, ऐसी नहीं है, शक्ति तेरे वार में।


मैं अटल हूॅं. मैं पराक्रमी हूँ, तू जल जायेगा मेरी आग में।।


मैं घायल हूॅं.मैं आहत हूॅं, मगर खौफ है, आंखों में तेरी।


हरा नहीं सकता तू मुझको, एक शेरनी से जंग है, तेरी।।