मुझे बाँधना तो आता है, छोड़ना नहीं आता।

मुझे बाँधना तो आता है, छोड़ना नहीं आता।


एक बार की बात है, एक गोपी के घर कन्हैया माखन खाते पकड़ा गया।


गोपी ने आव देखा ना ताव, झट कन्हैया का हाथ पकड़कर, कलाई मरोड़ दी।


कन्हैया ने कराहते हुए कहा-अरी! मैं भागता थोड़े हूँ, जो बाँह मरोड़ती है


गोपी- चोर! मैं तुझे जानती हूँ, तूं भाग जाएगा। आज मैं तुझे नहीं छोड़ेगी


कन्हैया- इस बार छोड़ दे, फिर कभी तेरे घर नहीं आऊँगा। तेरे पति की सौगंधा


गोपी- वाह वाह! मेरे पति की सौगंध क्यों खाता है?


कन्हैया-अच्छा तेरे बाप की सौगध, बस!


गोपी-तूं ये बता, तूं मेरे घर आया ही क्यों?


कन्हैया- बस यही तेरी गलती है। जो तूं इसे अपना घर समझती है।


तूं इसे अपना समझ ही मत। तूं मेरा-तेरा छोड़ दे। सब घर मेरे हैं,


तूं भी मेरी है, मैं ही तेरा पति हूँ, मैं ही तेरा पिता हैं।


गोपी-अच्छा यह बता कि तूने माखन क्यों खाया? 


कन्हैया- माखन किसने खाया? मैं तो इस पर से चींटी उतारने आया था,


तूं ही बीच में टपक पड़ी। गोपी- तो तेरे होठों पर माखन कैसे लग गया?


कन्हैया- मक्खी उड़ाते हए लग गया होगागोपी ने "


आ तेरी मक्खी उड़ाऊँ" कहते हए कन्हैया को एक खम्बे से बाँध दिया।


कोमल कन्हैया की मोटी मोटी आँखों में मोटे मोटे आँसू आ गए।


गोपी अपनी सखियों को बुलाने गई, तो कन्हैया शरीर सूक्ष्म करके रस्सी से निकल गयापर भागा नहीं, वहीं खड़ा हंसता रहा।


गोपी आई तो बोला- तूं तो निपट गंवार है। तुझे तो ढंग से बाँधना भी नहीं आता


गोपी- बता कैसे बाँधना चाहिए? बस कन्हैया को तो खेल करना था,


गोपी को ही कस के बाँध दिया, और बोला- ऐसे।


अब गोपी कहे- छोड़ देछोड़ देतो कन्हैया कहे कि मुझे बाँधना तो आता है, छोड़ना नहीं आता।


लोकेशानन्द कहता है कि आप ही वह गोपी बन कर, ऐसे दृश्यों की कल्पना करने लगो,


किसी कथा का ही कोई पात्र बनकर वैसा ही अनुभव करने लगोकभी यशोदा बनकर द्वार पर बैठकर प्रतीक्षा करो,


कभी नंद की जगह स्वयं बैठकर अपनी गोदी में उनका सिर रखो।


कभी यशोदा बनकर द्वार पर बैठकर प्रतीक्षा करो, कभी नंद की जगह स्वय बैठकर अपनी गोदी में उनका सिर रखो।


जल्दबाजी मत करो, समय लोआपकी कल्पना में भगवान जीते जागते हों।


भगवान आपके मन में घूमते फिरते हों, कभी बैठते हों, कभी लेटते हों,


कभी सोते हों, कभी जागते हों, हंसते-बोलते हों, खाते-पीते हों, कभी स्नान करते हों, कभी श्रृंगार करते हों।


उनके नैन नक्श का ध्यान करो। उनकी कोमलता की कल्पना किया करोकल्पना करो कि उनके आने से हृदय प्रकाशमय हो गया।


विचार किया करो कि भगवान शिव के मस्तक पर विराजती त्रिलोक पावनी गंगा, जिन परम पवित्र चरणों से निकली, उन चरणों के मेरे हृदय में आने से, मेरा हृदय पवित्र हो गया है।