बलजीत सिंह जी बेनाम की ग़ज़ल , शोख़ की जिसने भी देखी शोखियाँ

ग़ज़ल


शोख़ की जिसने भी देखी शोखियाँ


गिर गईं यारो उसी पर बिजलियाँ


रोशनी की क्या कमी थी शहर में


क्यों जला दी मुफ़लिसों की बस्तियाँ


जिंदगी में जब नहीं मुश्किल कोई


सोच में फिर किसलिए डूबे मियाँ


लोग इसको नाम देते प्यार का


आदतन आती हैं मुझको हिचकियाँ


ग़ज़ल लेखक बलजीत सिंह बेनाम


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