यह कैसी कर्तव्य परायणता?. जवाहर चांदवानी पत्रकार
यह कैसी कर्तव्य परायणता?. जब आपदा का समय आया और जब डॉक्टरों से ही सबसे ज्यादा उम्मीद थी ठीक उसी जरूरत के समय अधिकांश अस्पतालों ने अपने अपने दरवाजे मरीजों के लिए बंद कर दिए।
अपवाद स्वरूप कछ डॉक्टर सक्रियता से अपना कर्तव्य निभाने वाले भी देखे गये । सामान्य समय में दोनों हार्थो से धन बटोरने का कोई भी मौका न छोड़ने वाले ज्यादातर अस्पताल और डॉक्टर जरूरत के समय अपने अपने घरों में दुबक कर बैठ गए न जाने कितने मरीज़ जिन्हें कोरोंना के अलावा अन्य बिमारी थी वह अस्पताल दर अस्पताल भटकते रहे लेकिन उन्हें गेट से ही भगा दिया गया और इस कारण कई मरीज़ असमय ही मोत के मुंह में चले गए ।
न जाने कितनी गर्भवती महिलाओं को और छोटे बच्चों को भटकना पड़ा? एम्बुलेंस तक मुहैया न हो सकी तो दोपहिया वाहन से निजी अस्पताल दर अस्पताल इलाज की उम्मीद लेकर भटकते रहे मरीज़ अंततः निराश ही हए । कई लोग आँखों की तकलीफ़ तो कई लोग दांतों की परेशानी झेलते रहे और अनेक पुरानी बीमारियों के पीड़ितों को कितनी तकलीफ़ झेलना पडी यह तो भुक्तभोगी ही जानता है कोरोंना नहीं हआ गनीमत रही लेकिन रोना तो आ ही गया बीमारों को।
क्या डॉक्टरों ने यही शपथ ली थी डिग्री प्राप्त करते समय? डॉक्टर, पुलिस और सेना इनकी उपयोगिता तो संकट के समय ही परखी जाती है और लगता है कि इस संकट के समय अधिकांश डॉक्टर फैल हो गये हैं। कल्पना करे कि अराजकता के समय पुलिस और युद्ध के दौरान सेना के जवान अपनी जान को खतरा बताकर घर बैठ जाये तो फिर क्या होगा? डॉक्टरों की मनमानी के आगे शासन प्रशासन भी हमेशा लाचार ही नजर आता है न जाने क्यों? जवाहर चांदवानी पत्रकार