प. पूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत धर्म आधारित था डॉ. हेडगेवार का जीवन

धर्म आधारित था डॉ. हेडगेवार का जीवन                                          श्री निजानंदी ताई महाराज भक्त निवास लोकार्पण में डॉ. भागवत बोले इंदौर द्य 2 जनवरी (स्वदेश समाचार) मनुष्य शरीर, मन, बुद्धि व नियति के अनुसार चलता है, जिसका आधार संस्कार, संस्कृति व भक्ति है। अर्थ-काम का विचार धर्मानुसार होना चाहिए, हमेशा मार्ग व गंतव्य का स्मरण रखना है। गंतव्य को प्राप्त करने के नियम धर्म व मूल्य आधारित हैं। पहले अपने को पहचानना फिर दूसरे को देखनासृष्टि निर्माण हुई है तो वह प्रलयकाल तक चलेगी, इसके नियम हैं इस पर चलना जरुरी है अन्यथा संकट आएंगे। हम स्वयं को भूल गए इसलिए जगत को भूल गए। डॉ. हेडगेवार का जीवन धर्म आधारित था। उन्होंने जो किया वह धर्म है वे देश व दूसरों के लिए कार्य करते रहे।                                            उक्त प्रेरक विचार गुरुवार शाम को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प. पूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने श्रीनाथ मंदिर संस्थान परिसर में श्री निजानंदी ताई महाराज भक्त निवास के लोकार्पण अवसर पर व्यक्त किए। इस अवसर पर पू. जितेन्द्रनाथ महाराज, बाबा साहेब तराणेकर, पूर्व राज्यपाल व विहिप के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष वी.एस. कोकजे एवं पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन भी उपस्थित थींडॉ. भागवत ने कहा, वर्तमान समय में गृहस्थ जीवन आवश्यक है यह आश्रम का आधार है, समष्टी का प्रतीक है। मनुष्य ने जीवन में कैसे रहना, कैसे चलना, कैसे कार्य व व्यवहार करना यह गृहस्थ आश्रम बताता है। मैं, मेरा व जग इसका विचार है इसमें। मैं स्वरूप है परमेश्वर का, इसके लिए घर पीठ है। मेरे में वह सभी जिन्हें हम अपना मानते हैं और फिर जगत के कल्याण का भाव है यह सब गृहस्थ आश्रम सिखाता है                                                                                                                          राजनीतिक तंत्र का धर्म से संबंध नहीं उन्होंने कहा, एक तंत्र है जिसे राजनीतिक तंत्र कहते हैं इसका धर्म से कोई संबंध नहीं है, जब भारत में यह मानना प्रारंभ हुआ तब भी वेद, उपनिषद्, शास्त्र सब मौजूद थे, तब भी बड़े धर्मनिष्ठों को इस तंत्र में नौकरी करना पड़ी। जो अपने मुंह से कहते थे सब ब्रह्म हैं ऐसा कहने वाले भी जात-पात में उलझ गए। उनका व्यवहार पतित हुआ इससे समाज का नुकसान हुआ। हम वृद्धावस्था में धर्म कार्य करने लगे ऐसी परंपरा बन गई। इसलिए देश पर परकिय आक्रमण हुए हम गुलाम हुएहमारे घर देव घर प.पू. सरसंघचालकजी ने कहा, व्यक्ति आत्मलक्षी होना चाहिए, घर संस्कारों से चलने वाले होना चाहिए, यह आत्मीयता से होता है। आत्मीयता या अपनेपन से घर, मोहल्ला, बस्ती को अपना बनाने वाला बनना चाहिए। आज भक्त निवास का उद्घाटन है यह बना दानदाताओं से है इसका संदेश यही है कमाओ और दे दो यह धर्म है। डॉ. हेडगेवार ने जो किया वह धर्म है। देश व समाज के लिए उन्होंने कार्य किया। सत्य धर्म का मूल है। हमारा गृहस्थ जीवन धर्मप्राण है। हमारे घर में देवघर है, रिश्ते-नाते हैं आत्मीयता के संबंध हैं। मेहमान आता है तो भोजन करता है इसका ज्ञान परिवार में किसी को देना नहीं होता, बताना नहीं पड़ता, यह आदत है रिवाज है। अपना जीवन देश के लिए है, व्यक्ति को चरित्रवान बनाने हेतु है अर्थात देश को चरित्रवान बनाना है इसका मूल संत परंपरा में है उसकी उपासना में है। संत परंपरा जिन्होंने जीवित रखी उनके हमारे ऊपर अनन्य उपकार हैं। सभी उपासना का तत्व समान          डॉ. भागवत ने कहा, उपासना अध्यात्म के रूप में चलती है यह अधिष्ठान है। बीज रक्षण जरुरी है जो इसी से होता है। मार्ग पर चलते रहना आवश्यक है इस हेतु टिकना जरुरी है जो उपासना से आता हैहर उपासना का तत्व एक ही है। देश में अलग-अलग उपासना पद्धति है सबका तत्व एक है स्वांत, सुखाय पश्चात बहुजन हिताय अर्थात पहले स्वयं को पहचानो और फिर जग को देखो, इसे हमें समझना चाहिए जैसा जिसका भाग्य व पुरुषार्थ होगा वैसा उसे मिलेगा। मुक्ति सब को है इसलिए प्रयत्न निरंतर होना चाहिए जिससे सब ठीक होगाहम समाज कार्य करते हुए घर व व्यक्ति को संभालें यह हम आचरण में लाएं इससे देश विश्व गुरु होगादेवधर्म ही देशधर्म इस अवसर पर मुख्य अतिथि पू. जितेन्द्रनाथ महाराज ने कहा कि, गुरु-शिष्य का रिश्ता अद्वेत होता है। सद्गुरु ऐसा सूर्य है जो शिष्य इनके सान्निध्य में आता है उसे अपने अंत:करण में स्थित ईश्वरीय शक्ति की पहचान होती है जो सूर्यनारायण नहीं दे सकता। सद्गुरु सूर्य से भी आगे जाकर आत्मकरण में प्रकाश डालता है। हमें भगवान भक्ति का व्यसन लगना चाहिए। मनुष्य को जीवन में क्या करना है इसका बोध उसे नाथ मंदिर की भूमि पर होता है। परमात्मा होने का स्थान सद्गुरु ने दिया है यहां शोध व बोध करना है। नाथ याने जो तत्व जिसका अंत नहीं वह अनादि अनंत है यह स्वरूप सद्गुरु का है। सद्गुरु ने यहां अधिष्ठान रखा है यह तीर्थ स्थान हैपरमभाव को साकार करने का स्थान है। उन्होंने कहा परमेश्वर के तीन रूप हैं देव-देश-धर्म। देव के लिए देश जपना होगा व कर्तव्य करने हेतु धर्म है। देवधर्म अर्थात् देशधर्मदेवकारण में ही राष्ट्रकारण निहित है। नाथ मंदिर राष्ट्र जागरण की जगह है। इसके पूर्व प.पू. सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने श्रीनाथ मंदिर में दर्शन किए, पूजन किया। मंदिर में उनका स्वागत मातृशक्ति द्वारा किया गया पश्चात् उन्होंने लोकार्पणसमारोह का दीप प्रज्ज्वलन कर शुभारंभ किया। डॉ. भागवत व पू. जितेन्द्रनाथ महाराज ने श्री निजानंदी ताई महाराज भक्त निवास का लोकार्पण किया। उन्होंने भोजन प्रसाद भी मंदिर परिसर के अन्नपूर्णा हॉल में ग्रहण किया कार्यक्रम का संचालन श्री नामजोशी ने किया ।