कविता जाने क्यों

जाने क्यों


जाने क्यों अब शर्म से चेहरा गुलाबी नहीं होते ।


जाने क्यों अब मस्त - मिजाज नहीं होते ।


पहले  बता  दिया  करते थे दिल की  बातें ।


जाने क्यों अब चेहरे खुली किताब नहीं होते ।


सुना है बिन कहे दिल की बात समझ लेते थे ।


गले लगते ही दोस्त हालात समझ लेते थे ।


तब न फेसबुक न स्मार्ट मोबाइल होता था ।


तब ना इंस्टाग्राम ना ट्विटर अकाउंट था ।


.एक चिट्ठी से ही दिलों के जज्बात समझ लेते थे ।


.सोचता   हूँ  हम कहाँ  से कहाँ  आ गए ।


.प्रैक्टिकली सोचते सोचते भावनाओं को खा गए ।


.अब भाई भाई से समस्या का समाधान कहाँ पूछता है। 


.अब बेटा बाप से उलझनों का निदान कहाँ पूछता है। 


.अब कौन गुरु के चरणों में बैठकर ज्ञान की परिभाषा सीखें ।


 परियों  वाली बातें अब किसे आती है ।


.अपनों की याद अब किसे रुलाती है ।


.अब कौन गरीब को सखा बताता है ।


 .अब कहाँ कृष्ण सुदामा को गले लगाता है ।


.जिंदगी में हम प्रेक्टिकल हो गए मशीन बन गए हैं सब 


.इंसान जाने कहाँ खो गए 


.( सरस्वती रावल )


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