जाने क्यों
जाने क्यों अब शर्म से चेहरा गुलाबी नहीं होते ।
जाने क्यों अब मस्त - मिजाज नहीं होते ।
पहले बता दिया करते थे दिल की बातें ।
जाने क्यों अब चेहरे खुली किताब नहीं होते ।
सुना है बिन कहे दिल की बात समझ लेते थे ।
गले लगते ही दोस्त हालात समझ लेते थे ।
तब न फेसबुक न स्मार्ट मोबाइल होता था ।
तब ना इंस्टाग्राम ना ट्विटर अकाउंट था ।
.एक चिट्ठी से ही दिलों के जज्बात समझ लेते थे ।
.सोचता हूँ हम कहाँ से कहाँ आ गए ।
.प्रैक्टिकली सोचते सोचते भावनाओं को खा गए ।
.अब भाई भाई से समस्या का समाधान कहाँ पूछता है।
.अब बेटा बाप से उलझनों का निदान कहाँ पूछता है।
.अब कौन गुरु के चरणों में बैठकर ज्ञान की परिभाषा सीखें ।
परियों वाली बातें अब किसे आती है ।
.अपनों की याद अब किसे रुलाती है ।
.अब कौन गरीब को सखा बताता है ।
.अब कहाँ कृष्ण सुदामा को गले लगाता है ।
.जिंदगी में हम प्रेक्टिकल हो गए मशीन बन गए हैं सब
.इंसान जाने कहाँ खो गए
.( सरस्वती रावल )