गोवा मुक्ति संग्राम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका

गोवा मुक्ति का "ऑपरेशन विजय" एवं संघ की भूमिका                                     Indian Army, RSS, गोवा मुक्ति दिवस, गोवा मुक्ति संग्राम, पुर्तगाल, भारतीय सेना, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ                        गोवा का इतिहास                                                                 जैसा हम सभी जानते हैं, गोवा, भारत में बसा एक महत्वपूर्ण राज्य हैअपने छोटे आकार के बावजूद यह बड़ा व्यापारिक केंद्र था और बहुत पुराने समय से यह वैश्विक व्यापारियों के आकर्षित करता था। बड़े ही मुख्य भौगोलिक स्थिति की वजह से गोवा की तरफ मौर्य, सातवाहन और भोज राजवंश भी आकर्षित हुए थे।                                                                                1350 ई. पू में गोवा बहमनी राजाओं के अधीन चला गया था लेकिन सन 1370 में विजयनगर राज्य ने इस पर पुनः अपना शासन जमा लिया। विजयनगर साम्राज्य ने लगभग एक सदी तक इस पर तब तक अधिकार बनाये रखा जब तक कि बाहमानी सल्तनत ने 1469 में फिर से इस पर अपना कब्जा नहीं जमा लिया।           गोवा मुक्ति संग्राम                         18 दिसंबर 1961 के दिन ऑपरेशन विजय की कार्रवाई की गई। भारतीय सैनिकों की टुकड़ी ने गोवा के बॉर्डर में प्रवेश किया। 36 घंटे से भी ज्यादा वक्त तक जमीनी, समुद्री और हवाई हमले हुए। इसके बाद पुर्तगाली सेना ने बिना किसी शर्त के भारतीय सेना के समक्ष 19 दिसंबर को आत्मसमर्पण किया                                                                    गोवा मुक्ति संग्राम में संघ की भूमिका                                       दादरा, नगर हवेली और गोवा के भारत विलय में संघ की निर्णायक भूमिका थी. 21 जुलाई 1954 को दादरा को पुर्तगालियों से मुक्त कराया गया, 28 जुलाई को नरोली और फिपारिया मुक्त कराए गए और फिर राजधानी सिलवासा मुक्त कराई गई. संघ के स्वयंसेवकों ने 2 अगस्त 1954 की सुबह पुतर्गाल का झंडा उतारकर भारत का तिरंगा फहराया, पूरा दादरा नगर हवेली पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त करा कर भारत सरकार को सौंप दिया. संघ के स्वयंसेवक 1955 से गोवा मुक्ति संग्राम में प्रभावी रूप से शामिल हो चुके थे.                                                      गोवा में सशस्त्र हस्तक्षेप करने से नेहरू के इनकार करने पर जगन्नाथ राव जोशी के नेतृत्व में संघ के कार्यकर्ताओं ने गोवा पहुंच कर आंदोलन शुरू किया, जिसका परिणाम जगन्नाथ राव जोशी सहित संघ के कार्यकर्ताओं को दस वर्ष की सजा सुनाए जाने में निकला. हालत बिगड़ने पर अंततः भारत को सैनिक हस्तक्षेप करना पड़ा और 1961 में गोवा आज़ाद हुआ.                                                                        1954 में, भारतीय नागरिकों ने गुजरात और महाराष्ट्र के बीच स्थित दादर और नागर हवेली के विदेशी अंतः क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। पुर्तगाल ने इसकी शिकायत अंतरराष्ट्रीय न्यायलय, हेग में किया।          सन 1960 में न्यायलय का फैसला आया कि कब्जे वाले क्षेत्र पर पुर्तगाल का अधिकार है। कोर्ट ने साथ में ये भी फैसला दिया कि भारत के पास अपने क्षेत्र में पुर्तगाली पहुंच वाले विदेशी अंतः क्षेत्र पर उसके दखल को न मानने का पूरा अधिकार भी है।                                                        1 सितंबर 1955 को, गोवा में भारतीय कॉन्सुलेट को बंद कर दिया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि सरकार गोवा में पुर्तगाल की मौजूदगी को बर्दाश्त नहीं करेगी। भारत ने पुर्तगाल को बाहर करने के लिए गोवा, दमन और दीव के बीच में संपर्क तोड़ दिया । इसी बीच, पुर्तगाल ने इस मामले को अंतराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की पूरी कोशिश की। लेकिन कोई प्रभाव नहीं पड़ा ।                                          18 दिसंबर 1961 को भारतीय सेना ने गोवा, दमन और दीव में घुसकर तिरंगा फहरा दिया । इसमें संघ के स्वयंसेवकों ने भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया इसे ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया। पुर्तगाली सेना को यह आदेश दिया गया कि या तो वह दुश्मन को शिकस्त दे या फिर मौत को गले लगाए।                                                                      और इस तरह हमारे भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम तथा स्वयंसेवक संघ की विचारधारा के समन्वय से ऑपरेशन विजय सफलता पूर्वक पूर्ण हुआ और गोवा भारतीय गणराज्य का अंग बन गया                                30 मई 1987 को गोवा को राज्य का दर्जा दे दिया गया जबकि दमन और दीव केंद्रशासित प्रदेश बने रहे। 'गोवा मुक्ति दिवस' प्रति वर्ष '19 दिसम्बर को मनाया जाता है।