भारत माता

भारत माता                                    यह हमारी भारत माता है, हमारी प्यारी जन्म भूमि है इसका वर्णन करते हुए शास्त्रकारों ने कहा है                                      उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्ष तद् भारतं नाम भारती यत्र संतति।23विष्णु।                                                 ----------------------------------------------------------------------- अर्थात् जो समुद्र के उत्तर तथा हिमालय के दक्षिण में स्थित है वह देश भारतवर्ष कहलाता हैउसमें बसी हुई उसकी सन्तान को भारती कहते हैं। ऋषियों ने इसको सुरलोक से भी अनुपम बताया हैजहाँ जन्म लेने के लिए देवता भी लालायित रहते हैं                 ------------------------------------------ ----------------------------     गायन्ति देवा किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारत भूमि भागे। स्वर्गापवर्गा स्पदहेतुभूते, भवन्ति भूय पुरषासुरत्वात्।। (विष्णु-2/3/24)                       --------------------------------------------------------------------- ।। (विष्णु-2/3/24) अर्थात देवता लोग भी निरन्तर यही गाया करते हैं कि जिन्होंने स्वर्ग और म के मार्गभूत भारतवर्ष में जन्म लिया है, वे पुरुष हम देवताओं की अपेक्षा अपि सौभाग्यशाली हैं। यही वह पुण्यभूमि है जिसका कण-कण, ज्ञान भक्ति और तपोमय कर्म पवित्र हुआ है। यहीं परमेश्वर ने दस अवतार धारण कर बार-बार अवतरित हे विश्व का कल्याण किया। इसी पुण्य भूमि के लिये भगवान् रामचन्द्र ने लंका के र को अस्वीकार करते हुए कहा था                                          ---------------------------------------------------------------------  अपि स्वर्णमयी लंका, न में लक्ष्मण रोचते।। जननी जन्मभुमिश्च, स्वर्गादपि गरीयसी।।। अत्यंत महिमामयी        --------------------------------------------------------------------  अत्यंत महिमामयी है हमारी यह मातृभूमि। इसकी गौरवमण्डित संस्कृति ने सम्पूर्ण विश्व को अपने ज्ञान से आलोकित कर विश्व गुरु का गौरव प्राप्त किया। हमारी इस प्यारी मातृभूमि का स्वरूप विश्व में सबसे सुन्दर है। उत्तर में अडिग प्रहरी नगाधिराज हिमालय के उत्तुंग भाल पर भगवान शंकर का कैलाश, जन-मन को मोहित करने वाली विश्व की अत्युत्तम झील मानसरोवर, ललाट में स्थित पृथ्वी के स्वर्ग कश्मीर की अनुपम छटा, पश्चिम में अरावली की पर्वत मालाएँ एवं लहराता सिंधु सागर, पूर्व में असम की मनोहर छटा, मध्य प्रदेश में करधनी की भाँति सशोभित विंध्याचल पर्वतमाला तथा दक्षिण में अहर्निश माँ के चरणों का प्रक्षालन करती हिन्द महासागर की उत्ताल तरंगें।                                                -------------------------------------------------------------------- । भारत माता की वंदना करते हुए हम अपने राष्ट्रगीत के माध्यम से अपनी मातृभूमि का सुन्दर वर्णन करते हैं                -------------------------------------------------------------------  वन्दे मातरम्।                                                             सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्।                                  शस्य श्यामला मातरम्।                                                शुभ्र ज्योत्स्ना पुलकित यामिनीम।।                             फुल्ल-कुसुमित-द्रुमदल-शोभिनीम् ।                             सुहासिनी सुमधुर भाषिणीम् ।                                   सुखदा वरदां मातरम्।। वन्दे मातरम्।                         भारत माता की उपासना ही हम सब भारतीयों का परम धर्म त्वं ही दुर्गा दशप्रहरण-धारिणी कमला कमलदल विहारिणी वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वां। नमामि कमला अमला अतुलाम् सुजलां सुफलां मातरम्।। वन्दे मातरम्।।                 -------------------------------------------------------------------  मातरम्।। अद्भुत है हमारी भारत माता का स्वरूप। इसका विशाल हृदय विश्व की समस्त ऋतुओं को संजोए है। यहाँ ऋतु अनुरूप खान-पान की विविधता, भाषा तथा वेश-भूषा में भी देखी जा सकती है। इसलिए एकात्मता स्त्रोत में हम माता की वन्दना करते हुए गाते हैं                                                       -----------------------------------------------------------------  रत्नाकराधौतपदा हिमालय किरीटिनीम्।                       ब्रह्मराजर्षि रत्नाढ्या, वन्दे भारतमातरम्।।                         -------------------------------------------------------------------  सागर जिसके चरण धो रहा है, हिमालय जिसका मुकुट है और जो ब्रह्मर्षि तथा राजर्षि रूपी रत्नों से समृद्ध है, ऐसी भारत माता की मैं वन्दना करता हूँ,                                                -------------------------------------------------------------------  महेन्दो मलयः सहयो, देवतात्मा हिमालय:                    ध्येयो रैवतको विध्यो, गिरिश्चारावलिस्तथा।।                        -------------------------------------------------------------------  गिरिश्चारावलिस्तथा।। महेन्द्र, मलयगिरि, सहयादिदेवतात्मा हिमालय, रैवतक (गिरनार) विंध्याचल तथा अरावली पर्वत ध्यान करने योग्य हैं।                                                        ---------------------------------------------------------------------  गंगा सरस्वती सिंधुब्रह्मपुत्रश्च गण्डकी। कावेरी यमुना रेवा कृष्णा गोदा महानदी।ये नदिया भारतमाता के गले का हार हैं। अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवंतिकावैशाली, द्वारिका, ध्येया, पुरी, तक्षशिला, गया प्रयागः पाटलीपुत्रं, विजया नगरं महत्। इन्द्रप्रस्थः, सोमनाथ: तथाऽमृतसर: प्रियम्।उपर्युक्त नगर                                                        ------------------------------------------------------------------  इन्द्रप्रस्थः, सोमनाथ: तथाऽमृतसर: प्रियम्।उपर्युक्त नगर हमारी भारत माता की शोभा हैं। इसी माता की गोद में बैठकर ऋषियों, मनीषियों तथा कवियों ने चार वेद, अठारह पुराण, एक सौ आठ उपनिषद् तथा रामायण, महाभारत, श्रीमद्भगवद्गीता, जैन ग्रन्थ, त्रिपिटक तथा गुरू ग्रंथ जैसे ग्रन्थों की रचना की।                                                           ------------------------------------------------------------------- भारत माता की प्रशंसा जितनी की जाए, उतनी ही कम है। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर इसकी समन्वित संस्कृति की महिमा का गायन करते लिखते हैं                                                  -------------------------------------------------------------------    हे मोर चित्त पुण्य तीर्थे जागो रे धीरे कर एई भारतेर महामानवेर सागर तीरे केह नाहिं जाने, कार आह्वाने, कत मानुषेर धारा दुरि स्त्रोतों एलो कोना हते, समुद्रे हलो हारा।           --------------------------------------------------------------------समुद्रे हलो हारा। इसका आशय है कि भारत महामानवता का पारावार है। ओ मेरे हृदय! इस पवित्र तीर्थ में श्रद्धा से आँखें खोलो। किसी को भी ज्ञात नहीं कि किसके आह्वान पर मनुष्यता की कितनी निर्बाध वेग से बहती हुई, कहाँ-कहाँ से आई और इस महासमुद्र में मिलकर खो गई। ऐसी है हमारी भारत माता।                                                                   ----------------------------------------------------------------------आर्षभ भरत के नाम पर इस भूमि का नाम भारत हुआ। राजा भरत भगवान ऋभवदेव जी के ज्येष्ठ पुत्र थे। विष्णु पुराण में ऐसा उल्लेख आता है (1;2/32) कि ऋषभदेव जी ने वन जाते समय अपना राज्य भरत जी को दिया था; अत: तब से यह इस लोक में भारतवर्ष नाम से प्रसिद्ध हुआ। वे एक चक्रवर्ती सम्राट थे। सम्पूर्ण भारत को एकता सूत्र में बांधकर, उन्होंने स्वराज्य की स्थापना कीएक सम्प्रदाय के मतानुसार शकुन्तला-दुष्यंत पुत्र भरत के नाम पर ही हमारे देश को भारत माना जाता है।