भारत देश प्रशंसा (श्री विष्णु पुराण - अंश 2 अध्याय 3 1 उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् । वर्ष तद्भारतं नाम भारती यत्र संततिः।। समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में फैला हुआ देश भारत है; इस की संतान भारतीय, है। -------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- पुरुषैर्यज्ञ पुरुषो जम्बू द्वीपे सदेज्यते। यज्ञैर्यज्ञमयो विष्णुः अन्यद्वीपेषु चान्यता।। श्रेष्ठ यज्ञपुरुष जम्बूद्वीप में हमेशा यज्ञ करते रहते हैं। यज्ञ के कारण, विष्णूजी भी यज्ञमय बनकर इस द्वीप में रहते हैं। अन्य द्वीपों को यह भाग्य उपलब्ध नहीं है। ----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- नवयोजन साहस्रो विस्तारोस्य महामुने। कर्मभूमिरियं स्वर्गमपवर्गं च गच्छताम्।। इस का विस्तार है, नौ हजार योजन। यह स्वर्ग एवं मोक्ष प्राप्त करने की कर्मभूमि है। ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- 4योजनानां सहस्रं तु द्वीपोयं दक्षिणोत्तरात् पूर्वे किराता यस्यांते पश्चिमे यवनाः स्थिताः।। उत्तर से दक्षिण तक इस का विस्तार है, एक हजार योजन। इसके पूर्व में किरात जन और पश्चिम में यवन निवास करते हैं। ------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------ ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्या मध्ये शूद्राश्च भागशः। इज्यायुधवणिज्यादयैर्वर्तयंतो व्यवस्थिताः।। साथ साथ यज्ञ, शस्त्रधारण और व्यवसायादि कार्यो में व्यस्त ब्राह्मण. क्षत्रिय, वैश्य और शद्र बीच में निवास करते हैं। ----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- चत्वारि भारते वर्षे युगान्यत्र महामुने। कुतं त्रेता द्वापरं च कलिश्चान्यत्र न क्वचित्।। कुत, त्रेता, द्वापर और कलि नाम के चार युग इस भारत में ही हैं और कही भी नही हैं। ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- ---तपस्तप्यंति मुनयो जुह्वते चात्र यज्विनः । दानानि चात्र दीयन्ते परलोकार्थमादरात्।। यहाँ के मुनिजन मोक्ष प्राप्ति के लिये तप करते हैं। यज्ञ करनेवाले यज्ञ करते हैं और दानी जन आदर भाव से दान करते हैं। ------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------ अत्रापि भारतं श्रेष्ठं जम्बूद्वीपे महामुने। यतोहि कर्मभूरेषा ह्यतोन्या भोगभूमयः।। इस जम्बू द्वीप में भारत ही श्रेष्ठ देश है। क्योंकि यह कर्मभूमि है; शेष सभी भोगभूमि हैं। ----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- अत्र जन्म सहस्राणां सहस्रैरपिसत्तमः। कदाचिल्लभते जंतुर्मानुष्यं पुण्यसंचयात्।। हजारों जन्म लेकर पुण्य करने के बाद ही जीव को भारत में मानव जन्म मिलता है। ------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------ . गायंति देवाः किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारतभूमि भागे। स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते भवंति भूयः पुरुषाः सुरत्वात्।। भारत स्वर्ग एवं मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है। और स्वयं देवता प्रशंसा करते हैं कि ऐसे भारत में जन्म लेनेवाले मनुष्य, देवता से भी धन्य हैं ------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- . कर्माण्यसंकल्पित तत्फलानि संन्यस्य विष्णौ परमात्मभूते। अवाप्य तां कर्ममहीमनंते तस्मिन लयं ये त्वमला: प्रयान्ति।। क्योंकि वे लोग बिना फलाकांक्षा काम करते हुये परमात्मा-स्वरूपी बा में सब समर्पित कर निर्मल हो जाते हैं और उस से ही मिलघुलकर अनन्त में लीन हो जाते हैं। ----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- नीम नैतत् क्व वयं विलीने स्वर्गप्रदे कर्मणि देहबन्धम् देहबन्धम्पाण्याम धन्याः खलु ते मनुष्या ये भारते नेंद्रिय विप्रहीनाः।। । दमको स्वर्ग प्राप्त करानेवाला जो कर्म है, उसका क्षय हो जाने के बाद, सजानते नहीं कि अगला जन्म लेंगे कहाँकिंतु भारत में जन्म लेकरू. इंद्रिय बल को न गंवानेवाले लोग ही धन्य होते हैं।
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