महाराष्ट्र में सियासी संकट टलने का नाम नहीं दे रहा सुप्रीम कोर्ट ने उड़ाई विपक्ष की धज्जियां बोले तीनों पार्टी का एक वकील तक नहीं
रोहतगी ने SC में उड़ाई विपक्ष की धज्जियाँ: बोले- तीनों पार्टियों का एक वकील तक नहीं, एक पवार BJP के साथ




 






महाराष्ट्र का सियासी संकट थमने का नाम नहीं ले रहा है तो वहीं दूसरी ओर विपक्ष अपनी आबरू बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने पहुँच गया है। फडणवीस सरकार के गठन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चली सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की ओर से तीखी बहस हुई। मामले में बहस पूरी होते ही अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।


दरअसल अदालत में बहस के दौरान देवेन्द्र फडणवीस का पक्ष रखते हुए वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि विपक्ष ने सरकार बनाने का दावा तक पेश नहीं किया। उन्होने यहाँ तक कह दिया कि विपक्ष के इन दलों ने एक भी साझा प्रेस कांफ्रेंस नहीं की, न ही इन तीन दलों का कोई एक वकील है।


बता दें कि महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे आने के बाद शिवसेना और भाजपा के बीच मतभेद गहरा गए थे। हालाँकि चुनाव में दोनों दलों ने भाजपा-शिवसेना गठबंधन के नाम वोट माँगा था लेकिन बाद में दोनों दलों के बीच सत्ता में हिस्सेदारी को लेकर मतभेद के चलते यह गठबंधन टूट गया। शिवसेना इस सरकार में आधे कार्यकाल के लिए उद्धव ठाकरे को सीएमबनाने की माँग कर रही थी जबकि भाजपा की ओर से यही कहा गया कि पूरे पाँच साल तक मुख्यमंत्री तो फडणवीस ही रहेंगे।


एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक रोहतगी ने कहा कि चुनाव नतीजे आने के बाद शिवसेना और भाजपा में मतभेद गहरा गए। इसके बाद अजित पवार ने उन्हे समर्थन देने की बात कही थी। उन्होंने कहा कि अजित ने दावा किया कि उनके पास 53 विधायक हैं और वह उन विधायकों के दल के नेता। इसके बाद ही उन्होंने (भाजपा ने) राज्यपाल के समक्ष सरकार बनाने का दावा पेश किया।


रोहतगी ने अपनी दलील में विधायकों की खरीद-फरोख्त की बात को झूठा बताया। उन्होंने कहा कि एनसीपी के एक पवार हमारे साथ हैं तो दूसरे उनके विरोध में, मगर इनके पारिवारिक झगडे से हमें (भाजपा को) कोई लेना देना नहीं है।


उन्होंने आगे कहा कि अजित पवार ने उन्हें (भाजपा को) 53 विधायकों के समर्थन की चिट्ठी भी दिखाई थी। इस चिट्ठी में उन्होंने कहा था कि विधानसभा में मत-विभाजन होगा मगर हम चाहते हैं कि देवेन्द्र फडणवीस को मुख्यमंत्री की शपथ दिलाई जाए। उन्होंने कहा कि यहाँ एक संवैधानिक पहलू शामिल है, हो सकता है कि विपक्ष विधायकों के दस्तखत वाली चिट्ठी को ही फर्जी कह दे।





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