आज देव उठनी एकादशी है चार माह की चीर निंद्रा के बाद भगवान श्री हरि विष्णु जागते हैं आज सालीग्राम से होगा तुलसी का विवाह










आज देव उठनी एकादशी  चार माह की चिर निद्रा के बाद आज श्री हरी विष्णु जागते हैं 


शालिग्राम से होगा तुलसी का विवाह



 देवउठनी एकादशी आज है। चार माह की चीर निद्रा के बाद आज श्री हरि विष्णु जागते हैं। इसके बाद सभी तरह के शुभ कार्य आरंभ हो जाते हैं। खासकर तुलसी माता से शालिग्राम का विवाह होता है। शास्त्रों में भगवान शालिग्राम को श्री नारायण का साक्षात् रुप माना गया हैं। कहते हैं कि भगवान शालिग्राम का पूजन माता तुलसी के बिना अधूरा होता है और भगवान शालिग्राम और माता तुलसी का विवाह कराने से व्यक्ति के जीवन में सारे कलह, दुःख और रोग इत्यादि दूर हो जाते हैं। तुलसी-शालिग्राम विवाह करवाने से कन्यादान के जितना ही पुण्य प्राप्त होता है। श्री शालिग्राम जी का तुलसी युक्त चरणामृत पीने से भयंकर विष का जहर भी समाप्त हो जाता है और साथ ही चरणामृत का पान करने वाला व्यक्ति समस्त पापों से मुक्त होकर परलोक चला जाता है।



शालिग्राम की पूजा- कहते है जिस घर में भगवान शालिग्राम विराजमान हो वह घर सभी तीर्थ में से सर्वश्रेष्ठ होता है, जहां शालिग्राम का पूजन होता है वहां वास्तु दोष स्वत: ही समाप्त हो जाता है। भगवान शालिग्राम जी को स्नान कराकर और चंदन लगाकर तुलसी अर्पित करना और फिर चरणामृत ग्रहण करने मन, धन व तन की सारी कमजोरियां दूर हो जाती हैं। घर में भगवान शालिग्राम की पूजा करने से भगवान विष्णु-लक्ष्मी बहुत प्रसन्न होते हैं। शालिग्राम शिला का जल समस्त यज्ञों और संपूर्ण तीर्थों में स्नान के समान फल देता है और जो भक्त शालिग्राम शिला के जल से अभिषेक करता है वह संपूर्ण दान के पुण्य का उत्तराधिकारी बन जाता है।
शालिग्राम पत्थर की कहानी- नेपाल की गंडकी नदी में पाए जानेवाले काले रंग के अंडाकार पत्थर को शालिग्राम कहते हैं। लोग इस पत्थर को अपने घर और मंदिर में पूजते हैं। इस पत्थर के अंदर शंख, चक्र, गदा या पद्म खुदे होते हैं। वर्तमान में गंडकी नदी में इनकी संख्या ८० से लेकर १२४ तक है। शालिग्राम एक मूल्यवान पत्थर है। शालिग्राम के भीतर अल्प मात्रा में स्वर्ण होने के कारण इसके चोरी होने का भय अधिक रहता है।
घर पर ऐसे करें तुलसी विवाह
हिंदू धर्म में तुलसी विवाह हर साल कार्तिक महीने की देवउठनी एकादशी पर मनाई जाती है। तुलसी विवाह में माता तुलसी का विवाह भगवान शालिग्राम के साथ किया जाता है, जो भी व्यक्ति तुलसी विवाह का अनुष्ठान करता है उसे कन्यादान के बराबर का पुण्य मिलता है।
तुलसी विवाह की विधि-
तुलसी के पौधे का गमले को गेरु और फूलों से सजाएं। तुलसी के पौधे के चारों ओर गन्ने का मंडप बनाएं। तुलसी के पौधे के ऊपर लाल चुनरी चढ़ाएं। तुलसी को चूड़ी और श्रृंगार के अन्य सामग्रियां अर्पति करें। श्री गणेश जी पूजा और शालिग्राम का विधिवत पूजन करें। भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसीजी की सात परिक्रमा कराएं। आरती के बाद विवाह में गाए जाने वाले मंगलगीत के साथ विवाहोत्सव पूर्ण किया जाता है।
तुलसी पूजन का श्रेष्ठ मुहूर्त
शाम ७.५० से ९.२० के बीच में तुलसी पूजन करना चाहिए।
तुलसी पूजन की सामग्री
गन्ना, विवाह मंडप की सामग्री, सुहागन सामग्री, घी, दीपक, धूप, सिंदूर , चंदन, नैवद्य और पुष्प आदि।
तुलसी विवाह कथा
तुलसी का एक नाम वृंदा भी है। पृथ्वी लोक में देवी तुलसी आठ नामों वृंदावनी, वृंदा, विश्वपूजिता, विश्वपावनी, पुष्पसारा, नंदिनी, कृष्णजीवनी और तुलसी नाम से प्रसिद्ध हुर्इं हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, राक्षस कुल में एक कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम वृंदा था। वह बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्ति और साधना में डूबी रहती थीं, जब वृंदा विवाह योग्य हुर्इं तो उसके माता-पिता ने उसका विवाह समुद्र मंथन से पैदा हुए जलंधर नाम के राक्षस से कर दिया। वृंदा भगवान विष्णु की भक्त के साथ एक पतिव्रता स्त्री थी जिसके कारण उनके पति जलंधर समय के साथ और भी शक्तिशाली हो गया। सभी देवी-देवता जलंधर के कहर से डरने लगे। जलंधर जब भी युद्ध पर जाता वृंदा पूजा अनुष्ठान करने बैठ जाती। वृंदा की विष्णु की भक्ति और साधना के कारण जलंधर को कोई भी युद्ध में हरा नहीं पाता था। एक बार जलंधर ने देवताओं पर चढ़ाई कर दी, जिसके बाद सारे देवता जलंधर को परास्त करने में असमर्थ हो रहे थे। हताश देवताओं के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण कर लिया और छल से वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया। इससे जलंधर की शक्ति कम होती गई और वह युद्ध में मारा गया। जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला तो उन्होंने भगवान विष्णु को शिला यानी पत्थर बन जाने का शाप दे दिया। भगवान को पत्थर का होते देख सभी देवी-देवता में हाकाकार मच गया फिर माता लक्ष्मी ने वृंदा से प्रार्थना की तब जाकर वृंदा ने अपना शाप वापस ले लिया और खुद जलांधर के साथ सती हो गई। जब वह उसके साथ भस्म हो गर्इं, तो कहते हैं कि उनके शरीर की भस्म से तुलसी का पौधा बना। फिर उनकी राख से एक पौधा निकला जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी नाम दिया और खुद के एक रूप को पत्थर में समाहित करते हुए कहा कि आज से तुलसी के बिना मैं कोई भी प्रसाद स्वीकार नहीं करूंगा। इस पत्थर को शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा। तभी से कार्तिक महीने में तुलसी जी का शालिग्राम के साथ विवाह भी किया जाता है।