श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर द्वारिकाधीश मंदिर में ठाकुर जी के दर्शन Krishna Janmashtami 2019: श्री कृष्ण जन्माष्टमी की तैयारी द्वारिकाधीश मंदिर में जोरी से चल रही है। जन्माष्टमी पर द्वारिकाधीश हीरे जवाहर रात के साथ श्रृंगार में दर्शन देंगे 24 अगस्त को प्रात: 6.15 पर मंगला दर्शन होंगे । सुबह 6.30 बजे भगवान का पंचामृत अभिषेक के दर्शन और सुबह 9:00 बजे श्रंगार के दर्शन होंगे। मंदिर के विधि एवम मीडिया प्रभारी राकेश तिवारी एडवोकेट ने बताया कि श्रृंगार के दर्शन में द्वारिकाधीश का भव्य शृंगार होगा, जिसमें हीरे जवाहरात और स्वर्ण आभूषणों का पहनावा ठाकुर जी को किया जाएगा। : Janmashtami 2019: इस बार दो दिन मनेगी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, जानें महत्व, पूजा विधि इसके श्चात ठाकुरजी के और झांकियों के दर्शन जैसे शंगार के बाद ग्वाल वालों के बाद राजभोग के दर्शन चलते रहेंगेसांयकाल 7.30 बजे उत्थापन के दर्शन खुलेंगे और उसके बाद झांकियां निरंतर रहेंगी 10:00 बजे पहली झांकी खुलेगी जन्म की और 11:45 ठाकुर जी के जन्म के दर्शन होंगे। 25 अगस्त को प्रात: 10:00 बजे नन्द महोत्सव के दर्शन होंगे। उसके बाद मंगला, शृंगार, राजभोग होंगे। शयन के दर्शन सांय 4:30 से 5 बजे तक होंगे। Janmashtami 2019: जानें जन्माष्टमी की सही डेट, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि ग्वालियर में खुदाई में मिली थी द्वारिकाधीश की मूर्ति: द्वारिकाधीश मंदिर में विराजमान मूर्ति ग्वालियर में सेठ गोकुल चन्द्र पारिख को खुदाई के दौरान मिली थी। सबसे पहले इन्हें राजपुर स्थित मंदिर बगीचा में विराजमान किया गया था। उसके पश्चात ठाकुरजी ने सेठ गोकुल चंद को स्वप्न दिया कि हमें बृज मैं विराजमान कराया जाए। सेठ गोकुल चन्द्र ने मंदिर के लिए जमीन खरीदी और करीब लगभग 205 वर्ष पूर्व सन् 1814 मैं इस मंदिर का निर्माण कराया गया। मंदिर को सेवा पूजा के लिए कांकरोली की तृतीय पीठाधीश्वर गिरधर लाल महाराज को सेवा पूजा के सभी अधिकारों के साथ दे दिया। तभी से मंदिर की सेवा पूजा पुष्टीयमार्गीय संप्रदाय के अनुसार होती है Janmashtami 2019: इस मंदिर में जन्माष्टमी से पहले मनती है छठी सुनने में कुछ अटपटा लगेगा पर मुरादाबाद के एक मंदिर दाऊ जी की हवेली में जन्माष्टमी से एक दिन पहले कृष्ण की छठी मनाई जाती है। इस मंदिर में एक और अलग प्रथा है। पूरा देश 24 अगस्त को नंदोत्सव मनाएगा उस दिन यहां जन्मोत्सव और इसके अगले दिन नंदोत्सव मनाया जाएगा। दरअसल गुजराती मोहल्ला स्थित दाऊ जी की हवेली पुष्टि मार्गी है। पुष्टि मार्गी वर्ग अपनी मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाता है। दाऊ जी की हवेली के मुखिया अशोक द्विवेदी बताते हैं कि भगवान कृष्ण के जन्म के उल्लास में मथुरावासी उनकी छठी मनाना भूल गए थे। अगले वर्ष उनका जन्मदिन आने पर सखियों ने माता यशोदा को बताया की हमने कान्हा की छठी नहीं मनाई। इसके कारण जन्मदिन से एक दिन पहले धूमधाम से छठी मनाई गई। तभी से पुष्टि मार्गी श्री कृष्ण के जन्मदिन से एक दिन पहले छठी बनाते हैं। इ मनाई जाएगी। इसके बाद पहले छठी और बाद में जन्मोत्सव एवं नंदोत्सव मनाने की परम्परा पड़ी। उन्होंने बताया कि जन्मोत्सव 24 की रात बारह बजे मनेगा और पच्चीस को नंदोत्सव में सुबह दस से साढ़े ग्यारह बजे तक पालने में ठाकुर जी के दर्शन कराए जाएंगे। Janmashtami श्रीकष्ण जन्माष्टमी. ये हैं पुष्टि मार्गी पुष्टि मार्ग की स्थापना जगद् गुरु वल्लभाचार्य ने लगभग पांच सौ वर्ष पहले की थी। देश में इनके सात प्रमुख पीठ हैं। मुख्य पीठ उदयुपर में 'नाथद्वारा' है। देश में इनके एवं इनके वंशज के करोड़ों अनुयायी हैं। अष्टछाप के कवि भी इनके ही अनुयायी हैं। मंदिरों के आयोजनों में इन ही कवियों के गीत, भजन आदि गाए जाते हैं। श्री कृष्ण को बासुरी के बारे में ये बाते जानते हैं आप, बांसुरी में हैं ये तीन गुण बांसुरी श्री कृष्ण को अति प्रिय है, हमेशा उनके साथ उनकी बांसुरी रहती थी। बांसुरी में तीन गुण होने से प्रिय है। पहला बांसुरी में कोई गांठ नहीं होती है, इसी तरह मनुष्य को भी किसी भी बात की गांठ नही बांधनी चाहिए, किसी की भी बुराई को पकड़ के मत बैठो। दूसरा गुण यह है कि बांसुरी बिना बजाये बजती नहीं। अतः जब तक ना बोला जाय, हम भी व्यर्थ ना बोलें। तीसरा जब भी बांसुरी बजती है मधुर ही बजती है। इसका अर्थ हुआ जब भी बोलें, मीठा ही बोलें। जब ऐसे गुण प्रभु किसी में देखते हैं तो उसे उठाकर अपने होंठों से लगा लेते हैं। एक बांसुरी में होते हैं कुल आठ छिद्र एक बांसुरी में होते हैं कुल आठ छिद्र बांसुरी में कुल आठ छिद्र होते हैं। जिसमें पहला छिद्र मुंह के पास होता है, जिससे हवा फूंकी जाती है और छह छिद्र सरगम के होते हैं। जिन पर उंगलियां होती हैं। वहीं सबसे नीचे एक और छिद्र होता है, जो आठवां छिद्र है वो टूयूंनग के लिए होता है। Janmashtami 2019: इस बार दो दिन मनेगी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, जानें महत्व, पूजा विधि भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव यानी जन्माष्टमी में इस बार 23 और 24 अगस्त को दो दिन मनाई जाएगी। जन्माष्टमी का पर्व हिन्दु पंचाग के अनुसार, भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस बार यह अष्टमी 23 और 24 तारीख दो दिन है। विशेष उपासक 23 को जन्माष्टमी मनाएंगे जबिक आम लोग 24 अगस्त को जन्माष्टमी मना सकते हैं। क्योंकि उदया तिथि अष्टमी की बात करें तो यह 24 अगस्त को है। हालांकि भगवान कृष्ण के जन्म के वक्त आधी रात को अष्टमी तिथि को देखें तो 23 अगस्त को जन्माष्टमी मनाई जाएगी। भगवान श्री कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि को हुआ था। भाद्रपद मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र का संयोग होना शुभ माना गया है। रोहिणी नक्षत्र, अष्टमी तिथि के साथ सूर्य और चन्द्रमा ग्रह भी उच्च राशि में है। रोहिणी नक्षत्र, अष्टमी के साथ सूर्य और चंद्रमा उच्च भाव में होगा। द्वापर काल के अद्भुत संयोग में इस बार कान्हा जन्म लेंगे। घर-घर उत्सव होगा। लड्ड गोपाल की छठी तक धूम रहेगी। इस योग पर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। पर्व को लेकर तैयारियां शुरू हो गई है | अगस्त 24, 2019 को 08:32 बजे अधमी समाप्त होगी। जन्मोत्सव तीसरे दिन तक मनाया जाएगा। रोहिणी नक्षत्र 23 अगस्त 2019 को दोपहर 12:55 बजे लगेगा। रोहिणी नक्षत्र 25 अगस्त 2019 को रात 12:17 बजे तक रहेगा। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का महत्व मान्यता है कि भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए श्रीकृष्ण जन्माएमी मनाई जाती है। क्योंकि भगवान कृष्ण को भगवान विष्णु के ही अवतार हैं। इसके अलावा भगवान कृष्ण का ध्यान. व्रत और पूजा करने से भक्तों को उनकी विशेष कृपा प्राप्ति होती है। भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम या बलदाऊ जी का पालन पोषण भी नंदबाबा के घर में हुआ। वासुदेव जी की एक पत्नी थी रोहिणी जिनके पुत्र बलदाऊ जी महाराज थे। कंस ने देवकी को वासुदेव के साथ जेल में डाला तो रोहिणी को नंद बाबा के यहां भेज दिया गया। वैष्णव पंथ को मानने वाले हिन्दु धर्म के उपासक भगवान कृष्ण को अपना आराध्य मानते हैं ऐसे में आराध्य को याद करने लिए भी प्रित वर्ष लोग उनका जन्मोत्सव मनाते हैं। भोग में चलाएं दूध घी और मेवा त्व देवो वस्तु गोविद तुण्यणेच समापथा। साथ भगवान कृष्ण का भोग लगाना चाहिए। भोग के लिए माखन मिश्री, दूध, घी, दही और मेवा काफी महत्व पूर्ण माना गया है। पूजा से पांच पालो का । भोग लगा सकते है। चौक भगवान कृष्ण को दुध दही बहुत पसंद था ऐसे में उनके योग में दूध, दही और माखन जरूर सम्मिलित करना चाहिए। पूजन विधान. जन्माष्मी के दिन व्रती सुबह में स्नानादि कर बह्मा आदि पंच देवों को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर मुख होकर आसन ग्रहण करें। हाथ में जल, गंध, पुष्प लेकर व्रत का संकल्प इस मंत्र का उच्चारण करते हुए लें- 'मम अखिल पापपशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत करिष्ये।' इसके बाद बाल रूप श्रीकृष्ण की पूजा करें। गृहस्थों को श्रीकृष्ण का शृंगार कर विधिवत पूजा करनी चाहिए। बाल गोपाल को झूले में झुलाएं। प्रात: पूजन के बाद दोपहर को राहु, केतु, क्रूर ग्रहों की शांति के लिए काले तिल मिश्रित जल से स्नान करें। इससे उनका कुप्रभाव कम होता है। इस मंत्र का करें जाप सायंकाल भगवान को पुष्पांजलि अर्पित करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें- 'धर्माय धर्मपतये धर्मेश्वराय धर्मसम्भवाय श्री गोविन्दाय नमो नमः।' इसके बाद चंद्रमा के उदय होने पर दूध मिश्रित जल से चंद्रमा को अर्घ्य देते समय इस मंत्र का उच्चारण करें- 'ज्योत्सनापते नमस्तुभ्यं नमस्ते ज्योतिषाभपते:! नमस्ते रोहिणिकांतं अध्यं मे प्रतिग्रहाताम!' रात्रि में कृष्ण जन्म से पूर्व कृष्ण स्तोत्र, भजन, मंत्र- 'ॐ क्रीं कृष्णाय नम:' का जप आदि कर प्रसन्नतापूर्वक आरती करें।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी जानें महत्व, पूजा विधि