|| गजल ||
दर्द के आशियानों में दिल को संभाल रखा है ,
शीशे के प्यार में सपनों को संभाल रखा है ||
वे खबर सांसे नाचती रही लहरों के संग .
सूखी नदियों के किनारे को संभाल रखा है ||
साथ होकर भी चलना पाए थे साथ मेरे .
पकड़ छांव हमने खुद को संभाल रखा है ||
लिख न पाये हम अपनी ही दासता .
कोरे पन्नों को अब. तक संभाल रखा है ||
बिखर गए. फूल. भी महकते- महकते .
तितलियों ने आंसुओं को भी संभाल रखा है ||
एक तरफ आदमी अजनबी सा लगता है .
दुनिया भर के मुखौटों को संभाल रखा है ||
देह की बस्ती में मन. तडपता ही रहा .
सीने में जलती आग को संभाल रखा है ||
बचना पाया भगवान भी सौदागरों के जाल से .
पता नहीं किसने किसको संभाल रखा है ||
(लेखक राजेंद्र कोचला )